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सामूहिक निवेश क्या है?

सामूहिक निवेश क्या है?
Edited By: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Updated on: October 08, 2022 17:39 IST

सामाजिक सुरक्षा में कमियाँ: अपने मानव संसाधन के लिये ज़रूरी निवेश करने में विफल हो रहा है अमेरिका

ऐसे समय में जब दूसरे देश ऐसी कल्याणकारी प्रणालियां बनाकर लोगों में निवेश करते हैं जो सुरक्षा मुहैया कराती हैं, कुशलक्षेम व स्वास्थ्य में बेहतरी लाती हैं, और लोगों को ग़रीबी के गर्त में गिरने से बचाती हैं, लेकिन अमेरिका ने ख़राब ढंग से समन्वित कार्यक्रमों की खिचड़ी को जारी रखा हुआ है. सामाजिक सहायता और बीमा लोगों व परिवारों को मुश्किल समय से निकलने में मदद करते हैं और लोगों के कुशलक्षेम में वृद्धि करते हैं. वे छोटी और लंबी दोनों अवधियों में बेहतर सामाजिक व आर्थिक परिणाम देते हैं.

लोगों में निवेश में अभाव का मतलब है कि अमेरिका अपने समकक्ष देशों से पीछे छूट रहा है. कोविड-19 से पहले, अमेरिका में जीवन प्रत्याशा बीते एक दशक में ठहरी हुई थी. उसी अवधि के दौरान, जीवन प्रत्याशा नीदरलैंड में 1.2 साल, ब्रिटेन में 1.4 साल और फिनलैंड में 2.1 साल बढ़ गयी.

लोगों में निवेश में अभाव का मतलब है कि अमेरिका अपने समकक्ष देशों से पीछे छूट रहा है. कोविड-19 से पहले, अमेरिका में जीवन प्रत्याशा बीते एक दशक में ठहरी हुई थी. उसी अवधि के दौरान, जीवन प्रत्याशा नीदरलैंड में 1.2 साल , ब्रिटेन में 1.4 साल और फिनलैंड में 2.1 साल बढ़ गयी. अमेरिका में 17 साल से कम के 21 फ़ीसद बच्चे ग़रीबी में जीते हैं; यह जर्मनी में ऐसे बच्चों की संख्या का लगभग दोगुना है. अमेरिका उच्च-आय वाला अकेला देश है जहां यूनिवर्सल हेल्थकेयर (सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल) नहीं है, और हज़ारों अमेरिकी हर साल इसलिए अकाल मौत का शिकार होते हैं क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य बीमा नहीं होता. अमेरिका में नवजात मृत्यु दर स्पेन, इटली और स्वीडन के मुक़ाबले दोगुनी से ज़्यादा है.

ज़्यादातर सबूत दिखाते हैं कि बेरोज़गारी या कोई अप्रत्याशित बीमारी निकल आने जैसे मुश्किल वक़्त के दौरान लोगों को आर्थिक संबल मुहैया कराने के छोटी और लंबी अवधि में सकारात्मक आर्थिक नतीजे होते हैं, साथ ही इसका कुशलक्षेम और स्वास्थ्य पर भी असर होता है. उदाहरण के लिए, बेरोज़गारी बीमा (यूआई) एक सामाजिक बीमा सामूहिक निवेश क्या है? कार्यक्रम है, जो अपनी नौकरी गंवा देने वाले लोगों को एक आमदनी प्रदान करता है. यूआई लोगों को मकान किराये और भोजन के लिए भुगतान करने में मदद करता है. अमेरिका में यूआई कार्यक्रम है, लेकिन दूसरे उच्च-आय वाले देशों के मुक़ाबले इसके पात्रता मानदंड ज़्यादा सख़्त हैं, लाभ कम उदारतापूर्ण हैं, और भुगतान अपेक्षाकृत कम अवधि के लिए हैं. अमेरिका में यूआई की अधिकतम मियाद उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के मध्य-मूल्य (मीडियन) के आधे के आसपास है. सारे ओईसीडी देशों के औसत के मुक़ाबले, अमेरिका में यूआई की लाभ राशि भी 10 प्रतिशत अंक कम है.

अमेरिका के किसी भी इलाक़े में कोई व्यक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ बेरोज़गारी लाभ पर जी नहीं सकता. सबूत दिखाते हैं कि पर्याप्त यूआई तक पहुंच रखनेवाले लोग अपनी योग्यता के ज़्यादा अनुरूप नौकरियां खोज पाते हैं, अधिक वेतन पाते हैं, और स्वास्थ्य बीमा जैसा लाभों तक ज़्यादा पहुंच रखते हैं.

राशि और मियाद के लिहाज़ से पर्याप्त यूआई लाभ लोगों को वक़्त प्रदान करते हैं कि वे ग़रीबी या क़र्ज़ के जाल में फंसे बिना नया और उपयुक्त रोज़गार तलाश कर सकें. एक हालिया शोध दिखाता है कि अमेरिका के किसी भी इलाक़े में कोई व्यक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ बेरोज़गारी लाभ पर जी नहीं सकता. सबूत दिखाते हैं कि पर्याप्त यूआई तक पहुंच रखनेवाले लोग अपनी योग्यता के ज़्यादा अनुरूप नौकरियां खोज पाते हैं, अधिक वेतन पाते हैं, और स्वास्थ्य बीमा जैसा लाभों तक ज़्यादा पहुंच रखते हैं. सामूहिक रूप से, इन प्रभावों का मतलब है व्यक्तियों का भविष्य में बेहतर स्थिति में होना. यूआई भुगतान बच्चों वाले परिवारों के लिए आमदनी को निर्बाध रखने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. परिवार की आमदनी का संज्ञानात्मक विकास और स्कूली उपलब्धियों समेत विभिन्न तरह के बाल परिणामों (चाइल्ड आउटकम्स) पर महत्वपूर्ण कारणात्मक प्रभाव होता है.

सामाजिक प्रगति में पिछड़ता अमेरिका

अमेरिका वैश्विक स्तर पर उन गिने-चुने देशों में से एक है जो सवैतनिक मातृत्व-पितृत्व अवकाश प्रदान नहीं करता . हालांकि नये माता और पिता दोनों को सवैतनिक अवकाश के माता-पिता के लिए सकारात्मक आर्थिक परिणाम होते हैं. कैलिफोर्निया में सवैतनिक पारिवारिक अवकाश नीति है. वहां देखा गया है कि सवैतनिक अवकाश लेबर फोर्स में महिला भागीदारी को बढ़ाता है, महिलाओं को अधिक वेतन दिलाता है और उनके काम के घंटों सामूहिक निवेश क्या है? और सप्ताहों में वृद्धि करता है. इसके अलावा, चाइल्डकेयर में निवेश भविष्य में निवेश है. अमेरिका में चाइल्डकेयर कुख्यात ढंग से बस के बाहर की चीज़ है. एक हालिया शोध ने पाया कि जब कम सुविधा-संपन्न बच्चों को चाइल्डकेयर तक पहुंच मिली है, तो बतौर वयस्क उनके लेबर मार्केट, स्वास्थ्य तथा शिक्षा संबंधी परिणाम ठीकठाक ढंग से बेहतर रहे हैं.

जब कम सुविधा-संपन्न बच्चों को चाइल्डकेयर तक पहुंच मिली है, तो बतौर वयस्क उनके लेबर मार्केट, स्वास्थ्य तथा शिक्षा संबंधी परिणाम ठीकठाक ढंग से बेहतर रहे हैं.

इस बात का काफ़ी डर है कि आलसी लोग सरकारी ख़ज़ाने को चूस डालेंगे. हालांकि, सबूत इस धारणा का या इस सामूहिक निवेश क्या है? डर का समर्थन नहीं करते कि उदारतापूर्ण सुरक्षा कार्यक्रम काम नहीं करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. यह लंबे समय से मौजूद डर है जो कोविड-19 के दौरान केयर्स ऐक्ट के तहत बेरोज़गारी लाभों के विस्तार से दोबारा सामने आया. हालांकि, शोध बताते हैं कि विस्तारित यूआई लाभ ने लोगों को काम से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया . ये दुनिया भर के देशों में शोध के निष्कर्षों से मेल खाते हैं, जो बताते हैं कि सामाजिक सुरक्षा काम करने के लिए लोगों को हतोत्साहित नहीं करती है.

एक दूसरा काफ़ी प्रचलित तर्क है कि हम व्यापक कल्याणकारी कार्यक्रमों का ख़र्च नहीं उठा सकते. हालांकि, अमेरिका औसत ओईसीडी देश के मुक़ाबले सामाजिक कल्याण पर जीडीपी का कम हिस्सा ख़र्च करता है. हम देख रहे हैं कि लोगों में ऐसे निवेश लाभकारी होते हैं. उदाहरण के लिए, मेक्सिको के ‘प्रोग्रेसा’ (जो एक सशर्त नक़द ट्रांसफर कार्यक्रम है) से मिले सबूत उजागर करते हैं कि इस कार्यक्रम से बचपन में लाभान्वित हुए बच्चों ने बाद के दशकों में बेहतर शैक्षणिक और रोज़गार संबंधी परिणाम दिये. इसी तरह, अमेरिका के 1961 से 1975 के बीच लागू रहे खाद्य सहायता कार्यक्रम, सप्लीमेंटल न्यूट्रिशन असिस्टेंस प्रोग्राम (एसएनएपी) का एक अध्ययन दिखाता है कि जिन बच्चों ने खाद्य सहायता प्राप्त की, खाद्य सहायता नहीं प्राप्त करनेवाले वैसे ही बच्चों के मुक़ाबले, बड़े होकर उनका स्वास्थ्य बेहतर था, और महिलाओं के पास ज्यादा आर्थिक आत्मनिर्भरता थी.

अगर ठीक से डिजाइन की गयी है, तो सामाजिक सुरक्षा यह सुनिश्चित कर सकती है कि लोग ऐसे दौर में आर्थिक बर्बादी के गर्त मे न चले जाएं. बल्कि, सामाजिक नीतियां पर्याप्त और भरोसेमंद संबल प्रदान कर सकती हैं. छोटी अवधि में इससे प्राप्तकर्ता को लाभ होंगे और लंबी अवधि में इसके व्यापक आर्थिक लाभ होंगे.

शायद यही समय है कि जब इस धारणा को दूर किया जाए कि लोक कल्याण एक ख़र्च है, निवेश नहीं. मुश्किल समय हम में से बहुतों के सामने आता है; अगर ठीक से डिजाइन की गयी है, सामूहिक निवेश क्या है? तो सामाजिक सुरक्षा यह सुनिश्चित कर सकती है कि लोग ऐसे दौर में आर्थिक बर्बादी के गर्त मे न चले जाएं. बल्कि, सामाजिक नीतियां पर्याप्त और भरोसेमंद संबल प्रदान कर सकती हैं. छोटी अवधि में इससे प्राप्तकर्ता को लाभ होंगे और लंबी अवधि में इसके व्यापक आर्थिक लाभ होंगे . उदाहरण के लिए, एक ठीकठाक सामाजिक सुरक्षा जाल का होना इस बात के लिए पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करा सकता है कि लोगों को कुछ नया करने (इनोवेशन) की आज़ादी मिल सके. इस तरह का निवेश करने में विफलता ही वजह है कि अमेरिका अपने समकक्ष देशों की तुलना में सामाजिक प्रगति के कई बुनियादी सूचकों पर पिछड़ रहा है. दूसरे औद्योगिक देश क्या कर रहे हैं, इस पर ग़ौर करने से अमेरिका को फ़ायदा हो सकता है, क्योंकि वे ऐसे निवेश का समर्थन करने के लिए सबक और सबूत पेश करते हैं.

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67,228 करोड़ रुपये के बकाये की वसूली मुश्किल : सेबी

सेबी की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 में बताया गया कि कुल मिलाकर नियामक की 96,609 करोड़ रुपये की राशि को विभिन्न कंपनियों से वसूला जाना है। इनमें से कई कंपनियां जुर्माना भी अदा नहीं कर पाई हैं, बाजार नियामक को शुल्क का भुगतान नहीं कर सकी हैं और उन्होंने निवेशकों का धन वापस करने सामूहिक निवेश क्या है? के सेबी के निर्देश का पालन भी नहीं किया है।

सेबी ने कहा कि 96,609 करोड़ रुपये में से 65 प्रतिशत यानी 63,206 करोड़ रुपये सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) से संबंधित है और पीएसीएल लिमिटेड और सहारा समूह की कंपनी – सहारा इंडिया कमर्शियल कॉरपोरेशन लिमिटेड के सार्वजनिक निर्गमों से संबंधित है।

वहीं कुल राशि का 70 प्रतिशत यानी 68,109 करोड़ रुपये के मामले विभिन्न अदालतों और अदालत द्वारा नियुक्त समिति के समक्ष हैं।

अपनी वार्षिक रिपोर्ट में सेबी ने कहा कि 67,228 करोड़ रुपये के बकाये की वसूली करना मुश्किल है। इस श्रेणी में बकाये को तभी डाला जाता है जब वसूली के सभी तौर-तरीके अपनाने के बावजूद भी राशि को वापस नहीं पाया जा सका हो।

इसके अलावा सेबी ने 2021-22 के दौरान की जांच के दौरान प्रतिभूति नियमों का उल्लंघन करने से संबंधित 59 मामले अपने हाथ में लिए हैं जो इससे पिछले वर्ष 94 थे। 2019-20 में ऐसे मामलों की संख्या 140 थी।

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

ठगी के खिलाफ

जनसत्ता 24 सितंबर, 2014: अपने ढाई दशक के इतिहास में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी को कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं से जूझना पड़ा है और इन अनुभवों के कारण उसके अधिकार बढ़ाए गए हैं। अब एक बार फिर इस नियामक संस्था की ताकत में इजाफा किया गया है ताकि लाखों छोटे निवेशकों […]

जनसत्ता 24 सितंबर, 2014: अपने ढाई दशक के इतिहास में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी को कई तरह की सामूहिक निवेश क्या है? वित्तीय अनियमितताओं से जूझना पड़ा है और इन अनुभवों के कारण उसके अधिकार बढ़ाए गए हैं। अब एक बार फिर इस नियामक संस्था की ताकत में इजाफा किया गया है ताकि लाखों छोटे निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाया जा सके। इस मकसद से लाए गए विधेयक को संसद की मंजूरी मिल गई है। सेबी को नए अधिकार देने का कानूनी उपाय और पहले हो जाना चाहिए था। अब देर से ही सही, एक जरूरी कदम उठाया गया है। संशोधित कानून के जरिए सामूहिक निवेश वाली विभिन्न स्कीमों को सेबी के नियमन के दायरे में लाया गया है। सेबी को संदिग्ध निकाय या कंपनी से देश और देश के बाहर सूचना मांगने और तलाशी लेने की शक्ति दी गई है। उसे जांच के सिलसिले में कॉल डाटा रिकार्ड मंगाने का अधिकार दिया गया है। अलबत्ता फोन टैप करने का अधिकार उसे नहीं होगा, यह केवल टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के मुताबिक ही हो सकता है। सेबी कोई भी तलाशी मुंबई स्थित निर्धारित अदालत से मंजूरी के बाद ही कर सकेगा।

इस विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने सवाल उठाया सामूहिक निवेश क्या है? कि केवल मुंबई में निर्धारित अदालत रखे जाने का क्या औचित्य है। इस पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि देश के अनेक हिस्सों में एक साथ छापा मारने की जरूरत महसूस होने पर सेबी को सभी संबद्ध जगहों की अदालतों से मंजूरी लेनी होती है और यह व्यावहारिक नहीं होता। यह भी अंदेशा रहता कि इस बीच सबूत कहीं नष्ट न कर दिए जाएं। लेकिन इसकी थोड़ी-बहुत आशंका अब भी रहेगी। इसे निर्मूल करने की खातिरकेवल संपत्ति की जब्ती के लिए अदालत की मंजूरी अनिवार्य करने का प्रावधान किया जा सकता था।

संशोधित कानून ऐसे समय बना है जब निवेशकों को ठगे जाने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें शारदा ग्रुप और सहारा के मामले सर्वाधिक चर्चित रहे हैं। पश्चिम बंगाल के कई राजनीतिकों परभी शारदा ग्रुप को संरक्षण देने के आरोप लगे। तमाम सामूहिक निवेश योजनाओं में ऊंची लाभ दर का प्रलोभन दिया जाता है। यह वास्तविकता से परे होता है, पर भोलेभाले लोग अक्सर इसके झांसे में आ जाते हैं। कई कंपनियां मामूली पैसा जमा कराने के लिए दूरदराज के इलाकों तक में निवेशकर्ता के दरवाजे पहुंच जाती हैं। ऐसी अतिरंजित सुविधा कारोबार के लिहाज से संगत कैसे हो सकती है जिसमें लागत का हमेशा खयाल रखा जाता है। पर जिनकी मंशा लोगों की बचत हड़प कर जाने की हो, वे एजेंटों को आकर्षक कमीशन से लेकर निवेशकों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफे का सब्जबाग दिखाने से बाज नहीं आते। सेबी को और सशक्त बनाने की पहल यूपीए सरकार के समय ही हो गई थी। उसने पिछले साल जुलाई में अध्यादेश लाकर सेबी को कपटपूर्ण निवेश योजनाओं से निपटने का अधिकार दिया था। लेकिन तब विधेयक पारित नहीं हो सका। अब संशोधन विधेयक ने उसी कमी को पूरा किया है। पहचान छिपा कर शेयर बाजार में निवेश करने के खतरों को लेकर कई बार सवाल उठाए गए हैं। पर अभी तक इसे नजरअंदाज किया जाता रहा है। जाहिर है, सेबी को और सशक्त करने की जरूरत इस विधेयक के बाद भी बनी हुई है।

अनिल धीमान, नंदनगरी, दिल्ली

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किशोरावस्था में पोषण

This girl child of Baghudih village of Purulia, West Bengal, India, is a beneficiary of SBCC programme supported by UNICEF.

भारत 25.30 करोड़ किशोर-किशोरियों (10 से 19 वर्षों तक) का घर है।हम एक चौराहे पर खड़े हैं जहाँ दोनों संभावनाएँ है - हम एक पूरी पीढ़ी की क्षमता खो सकते है,या उनको पोषित करके समाज में बदलाव ला सकते हैं।जैसे-जैसे किशोर बड़े होते हैं, उनके आस-पासकावातावरण भी बदलता है और हम सबकोमिलकर किशोरावस्था की उम्र में अवसरोंकोसुनिश्चित करने की जरूरत है ।

किशोरावस्था पोषण की दृष्टि से एक संवेदनशीलसमय होता है, जब तेज शारीरिक विकास के कारण पौष्टिक आहार की माँग में वृद्धि होती है। किशोरावस्था के दौरान लिए गए आहार सम्बन्धीआचरणपोषणसम्बन्धीसमस्याओं में योगदान कर सकते हैं, जिसका स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्षमता पर आजीवन असर रहता है।

भारत में किशोरों का एक बड़ा भाग, 40% लड़कियाँ और 18% लड़के,एनीमिया (रक्त की कमी) से पीड़ित है। किशोरों में एनीमिया,उनके विकास, संक्रमणों के विरुद्ध प्रतिरोध-शक्ति तथा ज्ञानात्मक विकास और कार्य की उत्पादकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।

इस समस्या की प्रतिक्रिया में, केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्लू) ने जनवरी 2013 में एक राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक आयरन एवं फोलिक एसिड आपूर्ति (वीकली आयरन एवं फॉलिक एसिड सप्लिमेंटेशन(डब्लूआईएफएस)) कार्यक्रम की शुरुआत की थी। यह कार्यक्रम विभिन्न भारतीय राज्यों में किशोरियों में एनीमिया का समाधान करने के लिए यूनिसेफ द्वारा आयरन एवं फोलिक एसिड (आईएफए) की साप्ताहिक आपूर्ति पर मार्गदर्शी (पायलट) और कई चरणों वाली योजनाओं में वृद्धि के माध्यम से 13 वर्षों के प्रमाणिक अनुसंधान को आगे बढ़ाता है। इस योजना के अंतर्गत, प्रदान की जाने वाली सेवाओं में सम्मिलित हैं — सप्ताह में एक बार आयरनएवं फोलिक एसिड की आपूर्ति करना, वर्ष में दो बार पेट के कीड़ों (कृमि) की दवाई देना और पोषण के बारे में परामर्श देना — जैसे कि आहार को कैसे सुधारा जाये, एनीमिया की रोकथाम करना तथा आईएफए सप्लिमेंटेशन और कृमि-निवारण औषधियों के संभावित दुष्प्रभावों को कम करना।

यूनिसेफ इंडिया, भारत के 14 मुख्य राज्यों में; जिसमें कुल मिलाकर भारत की 88% किशोरियाँ निवास करती हैं, साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड आपूर्ति कार्यक्रम को लागू करने मेंसहयोग के लिएपसंदीदासाझेदार रहा है। इन क्षेत्रों के केंद्रबिंदु हैं —सम्मिलित योजना और विकास के लिए प्रोटोकॉलों का क्रियान्वन, प्रशिक्षण के साधनों का विकास, क्षेत्र में काम करने वालों (फील्ड वर्कर्स) की क्षमताओं का निर्माण, क्षेत्र विशेष में निरीक्षण को विकसित करना, तथा समीक्षा यांत्रिकियों के जानकारी तंत्र, प्रसार युक्तियों को विकसित करना और बड़े स्तर पर जागरूकता के लिए सामग्रियाँ तैयार करना।

पोषण अभियान 2018-20 की राष्ट्रव्यापी शुरुआत से वर्ष 2018 में किशोरों के पोषण के प्रति राजनैतिक एवं कार्यक्रमसम्बन्धी नई शक्ति का संचार हुआ।

भारत में, 10-19 वर्ष की आयु के किशोर और युवा कुल जनसँख्या का लगभग एक चौथाईहिस्सा हैं। उन पर सर्वाधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्यूंकि वह गरीबी, अन्याय और अभाव केचक्रों को तोड़ने की क्षमता रखते हैं।

किशोरावस्था की लड़कियां प्रतीकात्मक रूप से एक फार्म पर काम करती हैं, जोकि पिरिएड्स (मासिक धर्म)के दौरान फार्मपरकाम नहीं करने की वर्जना को तोड़ती है।

UNICEF/UN0215328/Vishwanathan किशोरावस्था की लड़कियां प्रतीकात्मक रूप से एक फार्म पर काम करती हैं, जो कि पिरिएड्स (मासिक धर्म)के दौरान फार्म पर काम नहीं करने की वर्जना को तोड़ती है।

ग्रामीण क्षेत्रों और कम आय वाले परिवारों के अशिक्षित या अकुशलमाता-पिताओं वाले बड़े परिवारों में अपर्याप्त पोषण अधिक पाया जाता है। विशेष रूप से शहरी निवासियों और धनवान परिवारों में,बदलते आहार के आचरणएवं शारीरिक गतिविधि के स्तरकेकारण अधिक वजन और मोटापा भी उभरती हुई समस्याएँ हैं। चिकनाई और चीनी से भरपूर प्रोसेस्ड भोजन का उपयोग बढ़ रहा है और किशोरवय एवं वयस्क दिन-प्रतिदिन आलसीहोते जा रहे हैं। किशोरवय लड़कियों में अधिक वजन और मोटापा व्यस्क महिलाओं में होने वाले मोटापे से जुड़ा होता है, और यह मधुमेह, रक्तचाप शिशुओं में अधिक वजन और मोटापे के खतरों में वृद्धि करता है।

किशोरावस्था पोषण सम्बन्धी कमियों, जो संभवतः प्रारंभिक जीवन में घटित होती है, को ठीक करने एवं विकास को पूरा करने और आहार सम्बन्धीअच्छेव्यवहारों को स्थापित करने का एक अवसर प्रदान करती है।

यूनिसेफ, स्कूल के अन्दर एवं बाहर, किशोरों की पोषण सम्बन्धी स्थितियों को सुधारने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को स्थापित करने और क्रियान्वित करने के लिए पूरे भारत में कार्य करता है। हम किशोरों को स्वास्थयप्रद भोजन और पेय पदार्थों को चुनने, शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने और एनीमिया की रोकथाम एवं उपचार को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए किए जा रहे क्रियाकलापों को समर्थन देते हैं। हम कुपोषण के मूल कारणों से निपटने के लिए शिक्षा, सामाजिक नीति, जल एवं स्वच्छता जैसे अन्य क्षेत्रों में भी कार्य करते हैं।

आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन ए और आयोडीन सहित, विटामिन और खनिज की कमियों को रोकने के लिए भोजन का सुदृढ़ीकरण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में यूनिसेफ आयरनएवं फोलिक एसिड की गोलियों के सेवन के स्तर को सुधारने और सामान्यतः उपेक्षित लोगों तक पहुँच बनाने के लिए राज्य विशेष की प्रसार नीतियों के विकास को समर्थन देता है । इस क्षेत्र में दो नए परिवर्तन जारी हैं। इनमें से पहला है, झारखण्ड के खूँटी जनपद में डब्लूआईएफएस के अनुपालन को सुधारने के लिए उल्लंघन सम्बंधित घटनाओं पर एक सकारात्मक वार्तालाप का निर्माण करना। दूसरा, असम में स्वयं में निहित और निजी रूप से व्यवस्थित चाय के बागानों में एनीमिया और सामाजिक प्रथाओंका समाधान करने के लिए लड़कियों के समूहों को प्रेरित करना है।

यूनिसेफ ने एनीमिया मुक्त भारत के विकास के लिए संचालनीय दिशानिर्देशों औरसम्बंधितसामग्रियों जैसे रिपोर्टिंग डैशबोर्ड (https://anemiamuktbharat.info/dashboard/#/) तथा संचार सामग्रियों की अवधारणा का निर्माण करने और उनका संयोजन करने में एमओएचएफडब्लू को अपना समर्थन दिया है।

यह प्रयास (अनीमिया-मुक्त भारत) डिनोमिनेटर - आधारित एचएमआईएस रिर्पोटिंग,आयरन एवं फॉलिक एसिड आपूर्ति की पूर्व तैयारी रखने,अनीमिया के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर उत्कृष्टता और उन्नत अनुसंधान केंद्र स्थापित करने पर ज़ोर देता है।

तीन राज्यों (बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़) में कठोर असमानताओं और अत्यधिक गरीबी से प्रभावित पाँच प्रखंडों में लड़कियों और महिलाओं पर पोषण के प्रभाव के मूल्यांकन (स्वाभिमान) कोअब 14 प्रखंडों में बढ़ाया गया है। इस पहल ने एक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया है और अब इसका स्तर पूरे देश में पोषण अभियान के लिए एक राष्ट्रीय ग्रामीण जीविका मिशन योगदान के रूप में चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जा रहा है। इसके लिए, लेडी इरविन कॉलेज में एक राष्ट्रीय महिला सामूहिक केंद्र (नेशनल सेन्टर ऑफ विमेन कलेक्टिव्स) स्थापित किया गया है ।

सेबी तीन कंपनियों की संपत्तियों की 10 नवंबर को करेगा नीलामी, जानिए क्या है मामला

इन 10 संपत्तियों में से पांच सुमंगल इंडस्ट्रीज लिमिटेड की, तीन इंफोकेयर इंफ्रा लिमिटेड की हैं और शेष जीएसएचपी रियलटेक लिमिटेड की हैं।

Sachin Chaturvedi

Edited By: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Updated on: October 08, 2022 17:39 IST

sebi- India TV Hindi News

Photo:FILE sebi

Highlights

  • सुमंगल इंडस्ट्रीज, जीएसएचपी रियलटेक और इंफोकेयर इंफ्रा लिमिटेड की संपत्तियों की 10 नवबंर को नीलामी
  • इन कंपनियों की कुल 10 संपत्तियों की 7.68 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य पर नीलामी की जाएगी
  • इन 10 संपत्तियों में से पांच सुमंगल इंडस्ट्रीज लिमिटेड की, तीन इंफोकेयर इंफ्रा लिमिटेड की हैं

भारतीय प्रतिभूति एवं सामूहिक निवेश क्या है? विनिमय बोर्ड (सेबी) निवेशकों से गैरकानूनी तरीके से जुटाए गए धन की वसूली के लिए तीन कंपनियों- सुमंगल इंडस्ट्रीज, जीएसएचपी रियलटेक और इंफोकेयर इंफ्रा लिमिटेड की संपत्तियों की 10 नवबंर को नीलामी करेगा। सेबी ने शुक्रवार सामूहिक निवेश क्या है? को जारी सार्वजनिक नोटिस में कहा कि इन कंपनियों की कुल 10 संपत्तियों की 7.68 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य पर नीलामी की जाएगी। इन 10 संपत्तियों में से पांच सुमंगल इंडस्ट्रीज लिमिटेड की, तीन इंफोकेयर इंफ्रा लिमिटेड की हैं और शेष जीएसएचपी रियलटेक लिमिटेड की हैं। इनमें भूमि, कई मंजिला इमारतें और पश्चिम बंगाल में स्थित एक फ्लैट शामिल हैं।

बाजार नियामक सेबी ने तीन कंपनियों और उनके प्रवर्तकों एवं निदेशकों के खिलाफ वसूली की कार्रवाई में संपत्तियों की बिक्री के लिए बोलियां आमंत्रित करते हुए कहा कि यह ऑनलाइन नीलामी 10 नवंबर को सुबह 10:30 बजे से लेकर दोपहर 12:30 बजे तक की जाएगी। सेबी की एक जांच में पाया गया कि जीएसएचपी रियलटेक ने 2012-13 में 535 व्यक्तियों से गैर-परिवर्तनीय रिडीमेबल डिबेंचर (एनसीडी) जारी करके नियामक मानदंडों का पालन किए बिना पैसा जुटाया था। जबकि इन्फोकेयर इंफ्रा ने 90 निवेशकों को गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर आवंटित करके 98.35 लाख रुपये जुटाए थे।

साथ ही, सुमंगल इंडस्ट्रीज ने अवैध सामूहिक निवेश योजनाओं (सीआईएस) के माध्यम से निवेशकों से 85 करोड़ रुपये एकत्र किए थे। फर्म अवैध 'आलू खरीद' निवेश योजनाएं चला रही थी, जिसमें निवेशकों को केवल 15 महीनों में 100 प्रतिशत तक लाभ का वादा किया गया था। सेबी ने 2013 और 2016 में क्रमशः सुमंगल और जीएसएचपी रियलटेक, इंफोकेयर इंफ्रा प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ उनके प्रवर्तकों और निदेशकों को निवेशकों से जुटाए गए धन को वापस करने का आदेश दिया था। हालांकि, संस्थाएं निवेशकों के पैसे वापस करने में विफल रहीं जिसके बाद नियामक ने उनके खिलाफ वसूली की कार्यवाही शुरू की।

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