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विदेशी मुद्रा क्यों

विदेशी मुद्रा क्यों
भीषण महंगाई से यदि आपकी कमर झुकने लगी है तो मलहम लगाकर उसे मजबूत कर लीजिए, क्यों महंगाई का असल अटैक तो अब होने वाला है। विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया थर थर कांप रहा है, और हर दिन गिरावट के नए रिकॉर्ड बना रहा है। FII की बिकवाली और घरेलू शेयर बाजार में गिरावट के चलते रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे लुढ़ककर 78.32 रुपये प्रति डॉलर के एक नये रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। वित्तीय बाजारों से लगातार विदेशी फंड का आउटफ्लो और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने रुपए पर दबाव बढ़ाया है।

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

धीरे धीरे क्यों खराब हो रही है देश की माली हालत, नीतियों ने डुबो दिया

देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) में फिर गिरावट आई है. 15 जुलाई, 2022 को खत्म हुए सप्ताह में यह 7.541 अरब डॉलर घटकर 572.712 अरब डॉलर रह गया. भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (RBI) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.
मुख्य रूप से फॉरेन करेंसी एसेट यानी एफसीए (Foreign Currency Assets) में आई कमी की वजह से हुई जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

एफसीए (FCA) 6.527 अरब डॉलर घटकर 511.562 अरब डॉलर रह गई. डॉलर में बताई जाने वाली एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है.
इसके अलावा गोल्ड रिजर्व का मूल्य 83 करोड़ डॉलर घटकर 38.356 अरब डॉलर रह गया.
इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी एमआईएफ (IMF) में देश का एसडीआर यानी स्पेशल ड्राइंग राइट (Special Drawing Rights) 15.5 करोड़ डॉलर घटकर 17.857 अरब डॉलर रह गया. आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 2.9 करोड़ डॉलर घटकर 4.937 अरब डॉलर रह गया
अब आपको बाताते हैं कि सरकार की नीतियां कैसे विदेशी मुद्रा बंडार को प्रभावित करतीहै.
चीन के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है.हमारे देश की एमएसएमई को भुगतान तक नहीं मिलता. खुद सरकार सेपेनेन्ट मिलने मेंमहीनों लगते हैं.
A critical problem faced by the Micro, Small and Medium Enterprises (MSME) sector is delayed payments. It’s the smallest establishments — the micro and small units — which have been hit the hardest post-Covid with their pending dues touching Rs 8.73 lakh crore, almost 80 per cent of the total pending for the entire MSME sector until 2021.
विदेशों से कोयला मंगाने की जिंद 10 परसेंट कोयला जबकि अब कोयले की किलल्त नहीं है
अकेले इस साल आठ प्रतिशत की गिरावट आ गई है
2014 में साठ रुपये का डालर था. यानी 33 फीसदी बढ़ गया
नरसिंह राव के समय में रुपये की कीमत दस साल में 47 से 48 रुपये पहुंच गई

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड गिरावट हुई है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गति से गिरावट हो रही है। भंडार में यह आए दिन नए रिकॉर्ड स्‍तर पर गिरावट जारी है। अभी तक विदेशी मुद्रा भंडार 1 ट्रिलियन डॉलर घट चुका है। इस साल करीब 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8 फीसदी घटकर 12 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यह 2003 के बाद सबसे तेज गिरावट है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की वजह, भारत के सेंट्रल बैंक की विदेशी मुद्रा क्यों ओर से रुपये के गिरावट को बचाने के लिए उठाए गए कदम हैं। वहीं अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मंदी की आशंका भी गिरावट की वजह है। मंदी का एक कारण डॉलर यूरो और येन जैसी विदेशी मुद्रा क्यों मुद्राओं मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के हाई लेवल पर पहुंच चुका है।

क्यों आ रही है रुपये में गिरावट

रुपये में गिरावट में अर्थशास्त्र का मांग और आपूर्ति का नियम लागू होता है। हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महंगाई बढ़ने से जब किसी देश को अपनी तिजोरी से ज्यादा डॉलर खर्च करने होते हैं, तो विदेशी मुद्रा क्यों डॉलर की मांग आ​पूर्ति से अधिक हो जाती है। ऐसे में रुपया गिरने लगता है। मौजूदा दौर में भारत कच्चे तेल की डेढ़ गुनी कीमत चुका रहा है। उस पर जिन विदेशी संस्थागत निवेशक जिन्हें FII कहते हैं वे भारी मात्रा में पैसा भारतीय शेयर बाजार से निकाल रहे हैं। इससे एक ओर जहां शेयर बाजार ढह रहे हें वहीं रुपया भी धराशाई हो रहा है।

रेलिगेयर ब्रोकिंग के जिंस एवं करेंसी विभाग के उपाध्यक्ष, सुगंधा सचदेवा ने कहा, ‘‘घरेलू शेयरों से बेरोकटोक धन निकासी और डॉलर के मजबूत होने के बीच, कुछ समय के लिए 78 अंक के आसपास मंडराने के बाद, भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले एक नए रिकॉर्ड निचले स्तर तक चला गया। एलकेपी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट डिपार्टमेंट के वाइस प्रेसिडेंट जतिन त्रिवेदी ने कहा, ‘‘फेडरज रिजर्व के आक्रामक रुख और भारतीय बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों की आक्रामक बिक्री के कारण रुपया कमजोर होकर 78.30 से नीचे चला गया।’’

आपकी जेब में एक और महंगाई का छेद

रुपये की कमजोरी से सीधा असर आपकी जेब पर होगा। आवश्यक सामानों की कीमतों में तेजी के बीच रुपये की कमजोरी आपकी जेब को और छलनी करेगी। भारत अपनी जरुरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। अमेरिकी डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी। इसका सीधा असर हर जरूरत की चीज की महंगाई पर होगा।

डॉलर के मजबूत होने का सीधा असर हमारे आयात पर पड़ता है। भारत जिन वस्तुओं के आयात पर निर्भर है, वहां रुपये की गिरावट महंगाई ला सकती है। इसका असर कच्चे तेल के आयात पर भी पड़ेगा। दूसरी ओर भारत गैजेट्स और रत्नों का भी बड़ा आयातक है। ऐसे में रुपये में गिरावट का असर यहां पर भी देखने को मिल सकता है।

मोबाइल लैपटॉप की कीमतों पर असर विदेशी मुद्रा क्यों

भारत अधिकतर मोबाइल और अन्य गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता है। विदेश से आयात के लिए अधिकतर कारोबार डॉलर में होता है। विदेशों से आयात होने के कारण अब इनकी कीमतें बढ़नी तय मानी जा रही है। भारत में अधिकतर मोबाइल की असेंबलिंग होती है। ऐसे में मेड इन इंडिया का दावा करने वाले गैजेट पर भी महंगे आयात की मार पड़ेगी।

इसका असर विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों पर रुपये की कमजोरी का खासा असर पड़ेगा। इसके चलते उनका खर्च बढ़ जाएगा। वे अपने साथ जो रुपये लेकर जाएंगे उसके बदले उन्हें कम डॉलर मिलेंगे। वहीं उन्हें चीजों के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी। इसके अलावा विदेश यात्रा पर जाने वाले भारतीयों को भी ज्यादा खर्च करना पड़ेगा।

कितना रिजर्व पर्याप्त है

अधिकतर देश विदेशी मुद्रा भंडार को अपनी अर्थनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं. बाजार में उथलपुथल का सामना करने, मुद्रा में भरोसा कायम करने, विनिमय दर को प्रभावित करने जैसे कई कारणों से उन्हें रोक कर रखा जाता है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश (आइएमएफ) ने कई विदेशी मुद्रा क्यों शोधपत्रों के जरिए बताया है कि रिजर्व की पर्याप्तता को मापने के तीन पारंपरिक पैमाने हैं. जिन देशों में कैपिटल एकाउंट्स पर नियंत्रण रखा जाता है उनमें आयात को प्रासंगिक पैमाना माना जाता है. यह बताता है कि झटके के मद्देनजर आयात के लिए कितने समय तक वित्त उपलब्ध कराया जा सकता विदेशी मुद्रा क्यों है. विकासशील देशों में तीन महीने तक आयात करने लायक रिजर्व को पर्याप्त मानने का नियम चलता है. लेकिन वित्तीय समेकीकरण में वृद्धि के कारण इस पैमाने को अब कम उपयोगी माना जाता है.

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा पैमाना बकाया अल्पकालिक बाहरी कर्ज की 100 फीसदी कवरेज है. यह खासकर उन देशों के लिए लागू है जो दूसरे देशों के साथ बड़े अल्पकालिक लेन-देन करते हैं. तीसरा पैमाना है व्यापक धन में रिजर्व के अनुपात का. इसका उपयोग पूंजी के बाहर जाने से उभरे संकट में रिजर्व की पर्याप्तता का आकलन करने के लिए किया जाता है. हाल के संकट के साथ स्थानीय डिपॉजिट के भी बाहर जाने से संकट पैदा हुआ. इस जोखिम से बचने के लिए रिजर्व व्यापक धन (जनता के पास और डिपॉजिट में मुद्रा) के 20 प्रतिशत के बराबर होना चाहिए.

भारत के पास पर्याप्त रिजर्व

भारत में रिजर्व अब तक 3 महीने से ज्यादा के आयात बिल भरने लायक रहता आया है. अक्तूबर 2021 में रिजर्व 642 अरब डॉलर के शिखर पर था और 16 महीने के आयात खर्च को पूरा कर सकता था. अब यह 545.6 अरब डॉलर पर आ गया है और 9 महीने के आयात खर्च को पूरा कर सकता है. विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के के बीच आयात में वृद्धि ने आयात कवर को घटा दिया है. हालांकि फिलहाल रिजर्व तीन महीने के आयात कवर की सीमा से ज्यादा है, लेकिन रिजर्व की पर्याप्तता का आकलन उथलपुथल को रोकने के लिए रिजर्व बैंक की पहल से किया जाएगा.

उपरोक्त दूसरे पैमाने के हिसाब से भारत का रिजर्व अल्पकालिक बाहरी कर्ज से ज्यादा है. हाल के अनुमानों के मुताबिक, अल्पकालिक बाहरी कर्ज उसके रिजर्व के अनुपात में आधे से भी कम के बराबर है. रिजर्व व्यापक धन के 20 प्रतिशत की सीमा से ठीक ऊपर है. रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, ऐसे भी समय आए जब रिजर्व इस सीमा से नीचे था.

नीति का हासिल और चुनौतियां

डॉलर में तेज उछाल ने न केवल रुपये को बल्कि पाउंड, विदेशी मुद्रा क्यों यूरो, येन जैसी मुद्राओं को भी कमजोर किया है. चालू खाते के घाटे के बीच पूंजी की विस्फोटक आवक ने रिजर्व में वृद्धि की गति को धीमा किया. जुलाई में, रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा की आवक को बढ़ाने और रुपये में गिरावट को रोकने के उपायों की घोषणा की थी. इन उपायों में, सरकारी तथा कॉर्पोरेट बॉन्डों में विदेशी निवेश की शर्तों को ढीला करना, विदेशी मुद्रा में उधार की सीमा में छूट देना, और बैंक आप्रवासियों से बड़े डिपॉजिट ले सकें इसकी छूट देना शामिल है. लेकिन डॉलर में तेजी के कारण इन उपायों का विदेशी मुद्रा की आवक पर फर्क नहीं पड़ा.

रिजर्व बैंक को शायद रुपये को सहारा देने के लिए दरों में शायद अतिरिक्त 50 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि करनी पड़ेगी. यह चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि इससे बैंकिंग सिस्टम में तरलता पर ऐसे समय में दबाव बढ़ेगा जब क्रेडिट की मांग बढ़ रही है. और ज्यादा विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए बॉन्डों को उभरते बाजार के बॉन्ड सूचकांक में शामिल करना बेहतर होगा.

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