मुद्रा हेजिंग

विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके

विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके

विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति - forex hedging strategy

विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति - forex hedging strategy

विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति चार भागों में विकसित होती है, जिसमें विदेशी मुद्रा व्यापारी के जोखिम जोखिम, जोखिम सहिष्णुता के विश्लेषण और रणनीति की वरीयता ये घटक विदेशी मुद्रा बचाव बनाते हैं: 1. जोखिम का विश्लेषण: व्यापारी को यह पता होना चाहिए कि मौजूदा या प्रस्तावित स्थिति में वह किस

प्रकार के जोखिम (जोखिम) ले रहा है। वहां से, व्यापारी को यह अवश्य पहचानना चाहिए कि इस खतरे को अनफिट करने पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, और यह निर्धारित करें कि मौजूदा विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार में जोखिम उच्च या निम्न है या नहीं।

2. जोखिम सहिष्णुता निर्धारित करें: इस कदम में, व्यापारी अपने जोखिम जोखिम स्तर का उपयोग करता है,

यह निर्धारित करने के लिए कि स्थिति के जोखिम को कितना ढीला होना चाहिए। कोई भी व्यापार कभी शून्य जोखिम नहीं होगा; यह जोखिम लेने वाले जोखिम के स्तर को निर्धारित करने के लिए व्यापारी पर निर्भर है, और अधिक जोखिम को हटाने के लिए वे कितना भुगतान करने के इच्छुक हैं।

3. विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति निर्धारित करें: यदि विदेशी मुद्रा विकल्पों का उपयोग मुद्रा व्यापार के जोखिम को सुरक्षित रखने के लिए करता है, तो व्यापारी को यह निर्धारित करना होगा कि कौन सी रणनीति सबसे अधिक लागत प्रभावी है

4. रणनीति को लागू करें और निगरानी करें: यह सुनिश्चित करके कि रणनीति उस तरह से काम करती है जिस तरह से, जोखिम कम से कम रहेगा

विदेशी मुद्रा मुद्रा व्यापार बाजार एक जोखिम भरा है, और हेजिंग केवल एक तरीका है कि एक व्यापारी जोखिम की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है। एक व्यापारी होने का इतना पैसा और जोखिम प्रबंधन है, जो शस्त्रागार में हेजिंग जैसे अन्य टूल को अविश्वसनीय रूप से उपयोगी है। सभी खुदरा विदेशी मुद्रा दलालों उनके प्लेटफार्मों में हेजिंग की अनुमति नहीं देते हैं। ब्रोकर को पूरी तरह से अनुसंधान करना सुनिश्चित करें जो आप व्यापार से पहले शुरू करते हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से निर्यातकों को फायदा हुआ, क्योंकि उन्हें डॉलर में भुगतान होता है। वहीं, आयातकों को नुकसान झेलना पड़ा, क्योंकि उन्हें डॉलर में पेमेंट करने के लिए बाजार से महंगा डॉलर खरीदना होता है। इस नुकसान को मुद्रा बाजार का जोखिम कहते हैं। इसे हेजिंग के जरिये कम किया जाता है।

क्या होती है हेजिंग:

हेजिंग को हम एक तरह के बीमा की तरह समझ सकते हैं, जिसमें किसी भी नकारात्मक असर को कम करने की कोशिश की जाती है। हेजिंग से जोखिम होने का खतरा कम नहीं होता। लेकिन अगर सही तरीके से हेजिंग की जाए तो किसी भी नकारात्मक परिस्थिति का असर जरूर कम हो सकता है। साधारण तौर पर आप समझ लें कि हेजिंग में आप वायदा बाजार में वह पोजिशन लेते हैं, जो हाजिर बाजार से बिल्कुल विपरीत होती है। इस तरह से आप मुद्रा बाजार में किसी भी उतार-चढ़ाव के असर को कम कर सकते हैं।

क्या तरीके हैं हेजिंग के:

मुद्रा बाजार में तीन तरीकों से हेजिंग की जाती है। पहला तरीका है फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट का। इस तरीके में कारोबारी पहले से तय की गई विनिमय दर पर पूर्व निर्धारित समयसीमा में करार करते हैं। इस तरीके में आप अपने फायदे और नुकसान दोनों पर लगाम लगा कर पहले से ही चलते हैं। दूसरा तरीका करेंसी फ्यूचर्स का है। इस तरीके में किसी भी दो खास करेंसी का तय समय और तय दर पर आपस में आदान प्रदान होता है। करेंसी ऑप्शन तीसरा तरीका है। इसे एक तरह का बीमा कह सकते हैं जो मुद्रा बाजार के आपके पक्ष में आने से फायदा देता है और आपके विपरीत जाने में आपकी सुरक्षा भी करता है।

निर्यातक करेंसी का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट बेचते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी निर्यातक को एक लाख डॉलर का सामान सप्लाई करना है। मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने के लिए वह वायदा बाजार में डॉलर बेचता है। इसके उलटे अगर किसी आयातक को माल के लिए एक लाख डॉलर चुकाना है तो वह वायदा बाजार में जाकर डॉलर खरीद जोखिम को कम कर सकता है। आयातक कॉल ऑप्शन के जरिये विदेशी मुद्रा की खरीद की कीमत को पहले से ही तय कर अपने जोखिम को कम करता है। इसके उलट निर्यातक पुट ऑप्शन के जरिये विदेशी मुद्रा की बिक्री की कीमत को पहले से तय करके जोखिम को कम करता है।

कच्चे तेल के उबाल से बढ़ेगी मुश्किल

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए हैं। ऐसे में भारत का 634 अरब डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार भी शायद भारतीय रुपये को तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के प्रतिकूल असर से बचाने में पर्याप्त साबित नहीं होगा। वित्त वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके कुल आयात में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जिससे रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार होने के बावजूद आयात कवर घटा है।

दिसंबर 2021 के आखिर में विदेशी मुद्रा भंडार भारत के 12.8 महीनों के वस्तुगत आयात के बराबर था। यह वित्त वर्ष 2021 में 17.7 महीनों की रिकॉर्ड ऊंचाई से कम है। यह अनुपात आगे और घटने के आसार हैं क्योंकि वित्त वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों में ब्रेंट क्रूड के दाम औसतन 74 डॉलर प्रति बैरल रहे हैं। यह स्तर तेल की मौजूदा कीमतों 90 डॉलर प्रति बैरल से करीब 18 फीसदी कम है।

बहुत से विश्लेषकों का कहना है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के असर से प्रभावी तरीके से बचाने के लिए काफी अधिक विदेशी मुद्रा भंडार की दरकार है। जेएम फाइनैंस इंस्टीट््यूशनल इक्विटी के एमडी और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने लिखा, 'भारत का आवश्यक विदेशी मुद्रा भंडार का हमारा अनुमान चालू खाते के घाटे और और भारत-अमेरिका के बीच अल्पावधि की ब्याज दरों में बढ़ते अंतर के कारण अप्रैल 2020 में 270 अरब डॉलर के निचले स्तर से बढ़कर 659 अरब डॉलर पर पहुंच गया है।'

भारत का वास्तविक विदेशी मुद्रा भंडार न केवल इष्टतम भंडार से करीब 25 अरब डॉलर कम है बल्कि वह अक्टूबर 2021 के अंत में रिकॉर्ड ऊंचाई 642 अरब डॉलर से भी कम है। धनंजय ने कहा, 'नतीजतन विदेशी मुद्रा भंडार या मासिक आयात अप्रैल 2020 में 24 गुना से घटकर अब 12 गुना पर आ गया है।'

इससे विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये पर दबाव रहने के आसार हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच रही हैं, जिससे भारतीय रुपये पर नया दबाव आ सकता है। तेल की ऊंची कीमतों का मतलब है कि आयात बिल बढ़ेगा, जो भारतीय रुपये के लिए नकारात्मक है। हमारा अनुमान है कि तेल की कीमतों में 10 फीसदी बढ़ोतरी से चालू खाते के घाटे में 15 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी।'

अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ओर कच्चे तेल की कीमतों पर गौर करें तो इन दोनों के बीच ऐतिहासिक रूप से बहुत ज्यादा नकारात्मक सह संबंध रहा है। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान इंपोर्ट कवर गिरकर 7.2 महीने के निचले स्तर पर चला गया था, जब भारत के क्रूड बास्केट की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल के सर्वोच्च स्तर पर था।

भारत का कच्चे तेल का आयात अप्रैल-दिसंबर 2021 के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 119.2 प्रतिशत बढ़कर 118.3 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2021 की समान अवधि में 54 अरब डॉलर था। इस दर के हिसाब से भारत का तेल आयात बिल वित्त वर्ष 2022 में करीब 158 अरब डॉलर रहने की संभावना है, जो वित्त वर्ष 2014 में रहे अब तक के सर्वाधिक आयात बिल 165 अरब डॉलर की तुलना में बहुत मामूली कम है। वित्त वर्ष 21 के 9 महीनों के 39.3 डॉलर प्रति बैरल की तुलना में भारत के क्रूड बॉस्केट की कीमत 85 प्रतिशत बढ़ी है और वित्त वर्ष 22 के पहले 9 महीनों में यह 72.8 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है।

तेल आयात का बिल ज्यादा होने का असर भारत के कुल आयात बिल पर भी पड़ा है। इसकी वजह से व्यापार घाटे और चालू खाते के घाटे में तेज बढ़ोतरी हुई है। भारत का कुल मिलाकर वस्तुओं का आयात वित्त वर्ष 21 के शुरुआती 9 महीनों के 263 अरब डॉलर की तुलना में 69 प्रतिशत बढ़कर चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 9 महीनों में 444 अरब डॉलर हो गया है। कुल मिलाकर व्यापार घाटा वित्त वर्ष 22 के शुरुआती 9 महीनों में 142.4 अरब डॉलर हो गया, जो अप्रैल-दिसंबर 2020 में 61.4 अरब डॉलर था।

अब ज्यादातर विश्लेषक उम्मीद कर रहे हैं कि तेल के दाम बढऩे के कारण भारत के व्यापार घाटे और कुल मिलाकर चालू खाते के घाटे में तेज बढ़ोतरी होगी। बैंक आफ बड़ौदा के मदन सबनवीस को उम्मीद है कि भारत का चालू खाते का घाटा वित्त वर्ष 22 में जीडीपी के करीब 2 प्रतिशत बढ़ेगा, जो वित्त वर्ष 21 में अधिशेष था।

जेएम फाइनैंशियल के धनंजय सिन्हा ने कहा कि वित्त वर्ष 22 की दूसरी छमाही में चालू खाते का घाटा जीडीपी का 4 प्रतिशत रहेगा जो पहली छमाही में करीब 3 प्रतिशत रहा है।

चालू खाते का घाटा अधिक होना भारत की मुद्रा के लिए ऐसे समय में बुरी खबर है, जब विदेशी पूंजी का प्रवाह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति में बदलाव के कारण विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके कम रहने की संभावना है।

डेली न्यूज़

भारतीय रुपए का अवमूल्यन | 10 May 2022 | भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये :

भारतीय रुपए का अवमूल्यन, मुद्रा अवमूल्यन, मुद्रास्फीति, मूल्यह्रास बनाम अवमूल्यन, अभिमूल्यन और अवमूल्यन

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था पर भारतीय रुपए के अवमूल्यन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 77.44 के अब तक के सबसे निम्न स्तर पर आ गया है।

प्रमुख बिंदु

अवमूल्यन:

  • अवमूल्यन के बारे में:
    • मुद्रा का मूल्यह्रास/अवमूल्यन का आशय अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट से है।
    • रुपए के मूल्यह्रास का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का कमज़ोर होना।
      • इसका मतलब है कि रुपया अब पहले की तुलना में कमज़ोर है।
      • उदाहरण के लिये पहले एक अमेरिकी डाॅलर 70 रुपए के बराबर हुआ करता था। अब एक अमेरिकी डाॅलर 77 रुपए के बराबर है जिसका अर्थ है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन हुआ है यानी एक डॉलर को खरीदने में अधिक रुपए लगते हैं।
        विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके
      • रुपए में गिरावट भारतीय रिज़र्व बैंक के लिये एक दोधारी तलवार (नकारात्मक एवं सकारात्मक) की भांँति होती है।
        • सकारात्मक प्रभाव:
          • सैद्धांतिक रूप से कमजोर रुपए को भारत के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिये, लेकिन अनिश्चितता और कमजोर वैश्विक मांग के माहौल में रुपए के बाहरी मूल्य में गिरावट उच्च निर्यात में परिवर्तित नहीं हो सकती है।
          • यह आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम उत्पन्न करता है और केंद्रीय बैंक के लिये ब्याज दरों को रिकॉर्ड स्तर पर लंबे समय तक बनाए रखना मुश्किल बना सकता है।
          • भारत अपनी घरेलू तेल आवश्यकता के दो-तिहाई से अधिक की पूर्ति आयात के माध्यम से करता है।
          • भारत खाद्य तेलों के शीर्ष आयातक देशों में से एक है। एक कमज़ोर मुद्रा आयातित खाद्य तेल की कीमतों को और अधिक बढ़ाएगी तथा उच्च खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगी।

          मुद्रा का अभिमूल्यन और अवमूल्यन:

          • लचीली विनिमय दर प्रणाली (Floating Exchange Rate System) में बाज़ार की ताकतें (मुद्रा की मांग और आपूर्ति) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं।
          • मुद्रा अभिमूल्यन: यह किसी अन्य मुद्रा की तुलना में एक मुद्रा के मूल्य में वृद्धि है।
            • सरकार की नीति, ब्याज दरों, व्यापार संतुलन और व्यापार चक्र सहित कई कारणों से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है।
            • मुद्रा अभिमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को हतोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा देश की वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है।

            अवमूल्यन और मूल्यह्रास:

            • यदि प्रशासनिक कार्रवाई से भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट आती है, तो यह अवमूल्यन है।
              • मूल्यह्रास और अवमूल्यन के लिये प्रक्रिया अलग है, प्रभाव के संदर्भ में कोई अंतर नहीं है।
              • चीन अभी भी पूर्व नीति का पालन करता है।

              भारतीय रुपए के वर्तमान मूल्यह्रास का कारण:

              • इक्विटी की बिक्री:
                • वैश्विक इक्विटी बाज़ारों में सरकारी विक्रय, जो अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (केंद्रीय बैंक) द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि, यूरोप में युद्ध, चीन में कोविड-19 उछाल के कारण विकास संबंधी चिंताओं की वजह बना, के चलते रुपए का मूल्यह्रास हुआ।
                • डॉलर का बहिर्वाह कच्चे तेल की उच्च कीमतों का परिणाम है और इक्विटी बाज़ारों में सुधार भी डॉलर के प्रतिकूल प्रवाह का कारण बन रहा है।
                • बढ़ती मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिये मौद्रिक नीति को सख्त करने के लिये आरबीआई द्वारा उठाए गए कदमों से भी मूल्यह्रास हुआ है।

                रुपए के मूल्यह्रास का समग्र अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

                • रुपए के कमज़ोर होने से चालू खाता घाटे का बढ़ना, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी जैसी स्थिति सामने आती है।
                • अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से कच्चे तेल की ऊंँची कीमतों और अन्य महत्वपूर्ण आयातों के कारण लागत-जन्य मुद्रास्फीति की ओर बढ़ रही है।
                  • लागत-जन्य मुद्रास्फी ति (जिसे वेज-पुश इन्फ्लेशन के रूप में भी जाना जाता है) तब होती है जब मजदूरी और कच्चे माल की लागत में वृद्धि के कारण समग्र कीमतों में वृद्धि (मुद्रास्फीति) होती है।

                  विगत वर्ष के प्रश्न:

                  प्रश्न. भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिये सरकार/RBI द्वारा निम्नलिखित में से कौन सा सबसे संभावित उपाय नहीं है? (2019)

                  (A) गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना।
                  (B) भारतीय उधारकर्त्ताओं को रुपया मूल्यवर्ग मसाला बांड जारी करने के लिये प्रोत्साहित करना।
                  (C) बाहरी वाणिज्यिक उधार से संबंधित शर्तों को आसान बनाना।
                  (D) विस्तारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण।

                  उत्तर: (D)

                  • मुद्रा मूल्यह्रास अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है। मुद्रा मूल्यह्रास आर्थिक बुनियादी बातों, ब्याज दर के अंतर, राजनीतिक अस्थिरता या निवेशकों के बीच जोखिम से बचने जैसे कारकों के कारण हो सकता है। भारत फ्लोटिंग विनिमय दर प्रणाली का अनुसरण करता है।
                  • गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाने से डॉलर की मांग कम होगी और निर्यात को बढ़ावा देने से देश में डॉलर के प्रवाह को बढ़ाने में मदद मिलेगी, अतः इस प्रकार रुपए के मूल्यह्रास को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
                  • मसाला बांड सीधे भारतीय मुद्रा से जुड़ा होता है। यदि भारतीय उधारकर्त्ता अधिक रुपए के मसाला बांड जारी करते हैं तो इससे बाज़ार में तरलता बढ़ेगी या बाज़ार में कुछ मुद्राओं के मुकाबले रुपए के स्टॉक में वृद्धि होगी, अतःइससे रुपए को मज़बूत करने में मदद मिलेगी।
                  • बाहरी वाणिज्यिक उधार (ECB) विदेशी मुद्रा में एक प्रकार का ऋण है, यह किसी अनिवासी ऋणदाता से भारतीय इकाई द्वारा लिया गया ऋण होता है। इस प्रकार ECB की शर्तों को आसान बनाने से विदेशी मुद्राओं में अधिक ऋण प्राप्त करने में मदद मिलती है, जिससे विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ेगा तथा रुपए के मूल्य में वृद्धि होगी।
                  • विस्तारवादी मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिये आरबीआई द्वारा उपयोग किये जाने वाले नीतिगत उपायों का समूह है। यह एक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति को बढ़ावा देता है। हालाँकि यह रुपए के मूल्य में भिन्नता को प्रभावित नहीं कर सकता है।

                  अतः विकल्प (D) सही है।

                  प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

                  किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह होता है कि वह आवश्यक रूप से:

                  Bangladesh Crisis: श्रीलंका की राह पर बांग्लादेश! केवल 5 महीने के आयात के लिए बचा है विदेशी मुद्रा भंडार

                  Bangladesh Financial Crisis: बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आयात पर होने वाला खर्च बढ़ा है पर उसके मुकाबले निर्यात से होने वाला आया नहीं बढ़ा है. इसके चलते व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है.

                  Bangladesh Crisis: श्रीलंका की राह पर बांग्लादेश! केवल 5 महीने के आयात के लिए बचा है विदेशी मुद्रा भंडार

                  Bangladesh Financial Crisis: श्रीलंका ( Sri Lanka) तो पहले से ही कंगाल हो चुका है अब पड़ोती मुल्क बांग्लादेश ( Bangladesh) पर भी वित्तीय संकट ( Financial Crisis) के बादल मंडरा रहे हैं. बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार ( Forex Reserves) में लगातार गिरावट आ रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी, ईंधन, माल ढुलाई और खाद्य सामग्रियों की कीमतों में उछाल के चलते बांग्लादेश का आयात खर्च बढ़ा है. जुलाई 2021 से मार्च 2022 के बीच बांग्लादेश द्वारा किए जाने वाले वस्तुओं पर खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है.

                  आयात पर बढ़ा खर्च
                  बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आयात पर होने वाला खर्च बढ़ा है पर उसके मुकाबले निर्यात से होने वाला आय नहीं बढ़ा है. इसके चलते व्यापार घाटा ( Trade Deficit) लगातार बढ़ता जा रहा है. आयात पर ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं उस मुकाबले निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त नहीं हुआ है जिसके चलते विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही है.

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                  रिपोर्ट्स के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है. और जितना विदेशी मुद्रा भंडार बचा है उसके जरिए केवल 5 महीने के लिए ही आयात जरुरतों को पूरा किया जा सकेगा. और अगर कमोडिटी, क्रूड और खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ती रही है पांच महीने से पहले भी भंडार खत्म हो सकता है. 2021-22 के जुलाई से मार्च के बीच बांग्लादेश में 22 अरब डॉलर के औद्योगिक कच्चे माल का आयात किया है. जो बीते साल की तुलना में 54 फीसदी ज्यादा है. कच्चे तेल के दामों में उछाल के चलते इंपोर्ट बिल 87 फीसदी बढ़ा है. उपभोक्ता उत्पादों के आयात पर 41 फीसदी इंपोर्ट बिल बढ़ा है. इन आंकड़ों से जाहिर है कि इंपोर्ट पर खर्च बढ़ता जा रहा है.

                  निर्यात बढ़ा विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके पर कम आया विदेशी मुद्रा
                  बांग्लादेश का निर्यात का लक्ष्य 2021-22 वित्त वर्ष के 10 महीनों में ही पूरा हो गया. बांग्लादेश ने 43.34 अरब डॉलर के उत्पादों का निर्यात किया. जो बीते साल से 35 फीसदी ज्यादा है. जुलाई 2021 से अप्रैल 2022 के बीच गारमेंट्स एक्सपोर्ट्स, चमड़े और उससे बने उत्पादों के निर्यात बढ़कर एक अरब डॉलर अमेरिकी डॉलर से ऊपर जा पहुंचा है. जून और उससे बने उत्पादों के एक्सपोर्ट से भी एक बिलियन डॉलर के करीब आय हुई है. ऐसे में बांग्लादेश का आयात बिल बढ़ा है तो भी निर्यात से आय बढ़ सकता है. लेकिन निर्यात बढ़ने के बावजूद आय घटी है. डॉलर की कीमतों में बैंक और ओपेन मार्केट में 8 रुपये के करीब का अंतर है. इसके चलते लोग प्रवासी बांग्लादेशी अवैध तरीके से विदेशी मुद्रा भेज रहे हैं जिससे केंद्रीय बैंक के पास विदेशी मुद्रा की कमी आई है. बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक के मुताबिक 2020-21 में प्रवासियों ने 26 अरब डॉलर से ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार भेजा था जो 2021-22 में घटकर 17 अरब डॉलर के करीब रह गया है.

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