असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें

Updated on: November 15, 2022 18:24 IST
Winter Food Benefits: इन तीन विंटर फूड से रखें सर्दियों में अपने सेहत का खास ख्याल, रोजाना सेवन से नहीं पड़ेंगे बीमार
सर्दियों में अपने शरीर को स्वस्थ और रोगमुक्त रखने के लिए निम्न विंटर फूड को अपने डाइट में शामिल करें. जानिए इनके बारे में.
By: ABP Live | Updated at : 13 Nov 2022 03:48 PM (IST)
सर्दियों में शरीर का रखें खास असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें ख्याल
Winter Food Benefits : ठंड के मौसम ( Winter Season) ने दस्तक दे दी है. गर्मी से छुटकारा मिलने के बाद सर्दियों का सुहाना मौसम लोगों को खूब पसंद आ रहा है. दिन में कड़ी धूप रहती है तो शाम तक सिहरावन सा महसूस होने लगता है. लेकिन यह सुहावना मौसम अपने साथ कई सारी स्वास्थ्य समस्याएं भी लेकर आता है. सर्दियों की शुरुआत के साथ ही हमारे शरीर को अच्छे देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि इसी ठंड के मौसम में हमें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जैसे हड्डियों में दर्द, खुश्क त्वचा, एंटीऑक्सीडेंट की कमी, सर्दी-खांसी, सीने में जकड़न. हालांकि कई ऐसे विंटर फूड (Winter food) है जिसे अपनी डाइट में शामिल करके आप स्वस्थ और सेहतमंद तरीके से सर्दियों का आनंद ले सकते हैं.
फेमस सेलिब्रिटी न्यूट्रिशन एक्सपर्ट रुजुता दिवाकर ( Rujuta Diwakar) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से कुछ ऐसे विंटर फूड्स के सुझाव दिए हैं जो आपके स्वास्थ्य का प्राकृतिक रूप से देखभाल करने में मदद करेंगे.
आइए जानते हैं कौन से हैं वो तीन सुपर फूड
गोंद (Gond)
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1.सर्दियों के मौसम में गोंद ( Gond) का सेवन काफी फायदेमंद माना जाता है क्योंकि इससे शरीर में गर्माहट पहुंचती है. पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण सर्दियों में लोग इसका खूब सेवन करते हैं. इसके साथ ही प्रसव के बाद महिलाओं को गोंद के लड्डू खाने की सलाह दी जाती है.
2.सर्दियों की शुरुआत के साथ ही मांसपेशियों और हड्डियों में दर्द की शिकायत रहने लगती है. ऐसे में गोंद के लड्डू, हलवा बना कर खाना फायदेमंद होता है> इससे शरीर में गर्माहट लाने के साथ-साथ मांसपेशियों और हड्डियों में मजबूती आती है. यह आपकी रीढ़ की हड्डी के लिए भी एक बहुत ही अच्छी औषधि है.
3.बेहतर इम्यूनिटी के लिए भी गोंद काफी फायदेमंद होता है. ऐसे में आप इसका हलवा या फिर लड्डू बना कर खा सकते हैं. इससे आपकी इम्यूनिटी अच्छी होने के साथ रोगों से लड़ने की भी ताकत मिलेगी. सर्दियों में अक्सर सर्दी जुकाम की शिकायत रहती है ऐसे में गोविंद आपको इन सब से राहत दिलाने में मददगार साबित हो सकता है.
ग्रीन गार्लिक(Green Garlic)
1.सर्दियों में मिलने वाला हरा लहुसन ( Green Garlic) कई औषधीय गुणों से भरपुर होता है. न्यूट्रिशन एक्सपर्ट रुजुता दिवाकर के मुताबिक इसमें एलिसिन पाया जाता है जो चेहरे के लिए काफी फायदेमंद होता है. अक्सर हम सर्दियों में अपने चेहरे को एंटिऑक्सीडेंट ( Antioxidant) प्रदान करने के लिए महंगे प्रोडक्ट पर गाढ़ी कमाई खर्च कर देते हैं लेकिन ग्रीन गार्लिक का सेवन कर हम इसे घर में ही बिना पैसे खर्च किए ही मेंटेन कर सकते हैँ.
2.हरे लहसुन को हम या तो विंटर ( winter) में बनने वाली स्पेशल वेजिटेबल में शामिल कर सकते हैं या फिर इसकी तीखी चटनी बना कर सैंडविच, या रोटी के साथ खा सकते हैं. ये आपके स्किन की कई परेशानियां दूर कर सकता है, स्किन में होने वाली झुर्रियां कम करने के साथ साथ सूजन, फाइन लाइन्स (Finelines) और रूखी त्वचा को रिपेयर करता है.
3.हरी लहसुन में सल्फ्यूरिक कंपाउंड ( Sulphuric Compound) समेत कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. ये अपने एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों के कारण शरीर में एंटीऑक्सीडेंट की भूमिका निभाता है. हरे लहसुन में खून को पत्ला करने और कॉलेस्टॉल को कम करने जैसे गुण पाए जाते हैं.
शलजम ( Turnip)
1.शलजम सर्दियों के मौसम में ही उपलब्ध होता है. इसको हम इम्यूनिटी बूस्टर फूड के नाम से जानते हैं. इसे आप अपने डाइट में जूस या सलाद के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.इसमें सभी तरह के मिनरल्स पाए जाते हैं. इसमें में पाए जाने वाला विटामिन सी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार हो सकता है.
2.सर्दियों के मौसम में अक्सर हड्डियों की समस्याएं बढ़ जाती है. हड्डियों में अकड़न, मांसपेशियों में दर्द, उनके लिए शलजम के पत्ते फायदेमंद साबित हो सकते हैं.इसमें मौजूद विटामिन सी शरीर में कैल्शियम लेवल को कम नहीं होने देता है.
3.आजकल हमारा जुड़ाव इंटरनेट और लैपटॉप से कुछ ज्यादा ही है क्योंकि अधिकतर लोगों का वर्क फ्रॉम होम चल रहा है ऐसे में आंखों का ख्याल रखना भी बहुत जरूरी है. आंखों को स्वस्थ रखने के लिए भी शलजम का उपयोग किया जा सकता है. एक स्टडी से पता चला है कि शलजम की हरी पत्तियों में ल्यूटिन (lutein)और जियाजैंथिन (Zeaxanthin) नामक दो कंपाउंड मौजूद होते हैं जो आंखों को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं.
Published at : 13 Nov 2022 03:48 PM (IST) Tags: winter Health News turnip Winter असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें Food Tips हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi
बिना इंटरनेट कनेक्शन के ऐसे कर सकेंगे UPI पेमेंट, यहां जानें पूरा तरीका
गूगल पे फोन पे जैसे ऐप से पैसे ट्रांसफर करना आम बात है लेकिन कभी इंटरनेट कनेक्शन में प्राब्लम होने से हमें पेमेंट करने में समस्या आती है। आप बिना इंटरनेट कनेक्शन और बिना ऐप से पेमेंट कर सकते हैं। आइये इसका पूरी तरीका जानते हैं।
नई दिल्ली, टेक डेस्क। आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप Google Pay, Paytm, PhonePe, या किसी अन्य UPI भुगतान सेवा का उपयोग करके ऑनलाइन पैसे भेजने के बीच में हैं, और आपका इंटरनेट कनेक्शन किसी कारण से काम करना बंद कर देता है। अगर हां तो *99#, एक USSD (अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डाटा) आधारित मोबाइल बैंकिंग सेवा आपके लिए मददगार हो सकती है। यह आपको अनुरोध करने और पैसे भेजने, UPI पिन बदलने और यहां तक कि बिना इंटरनेट कनेक्शन के खाते की शेष राशि की जांच करने में मदद करती है।
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Khakee: The Bihar Chapter: IAS और क्रिमिनल के बीच की असली जंग को दिखाएगी सीरीज, नीरज पांडे लेकर आए हैं 90 के दशक की कहानी
Khakee: The Bihar Chapter: बिहार में क्रिमिनल्स और IAS के बीच के टकराव की कहानी को पर्दे पर ला रहे हैं नीरज पांडे और भव धूलिया। इस सीरीज के प्रमोशन के लिए नीरज दिल्ली पहुंचे जहां उन्होंने कहानी को लेकर बड़ा खुलासा किया है।
Written By: Ritu Tripathi @ritu_vishwanath
Updated on: November 15, 2022 18:24 IST
Image Source : INDIA TV खाकी: द बिहार चैप्टर
Khakee: The Bihar Chapter: 'ए वेडनसडे' जैसी थ्रिलर फिल्म और 'स्पेशल ऑप्स' जैसी सुपरहिट सीरीज देने वाले निर्माता निर्देशक नीरज पांडे अब एक बार फिर नेटफिलिक्स पर एक दमदार कहानी लेकर आ रह हैं। उनकी वेब सीरीज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' जल्द ही स्ट्रीम होने वाली है। इस सीरीज को भव धूलिया ने डायरेक्ट किया है। इसे लेकर जहां अब तक लोगों के मन में कई सवाल थे कि ये सीरीज कैसे बिहार की बात कर रही है, या बिहार को लेकर गलत छवि गढ़ रही है, इन सब बातों के जवाब देते हुए नीरज पांडे ने खुलासा किया है कि यह सीरीज कोई मनगठंत किस्सा नहीं बल्कि एक IAS के अनुभव पर आधारित असली कहानी है।
IAS अमित लोढा की किताब पर आधारित है सीरीज
इस सीरीज के प्रमोशन के लिए नीरज पांडे और भव धूलिया मंगलवार को पूरी कास्ट के साथ दिल्ली पहुंचे। जब INDIA TV ने नीरज से इस सीरीज की कहानी को लेकर बात की और सवाल किया कि यह सीरीज क्या बिहार की नकारात्मक छवि बनाने का काम करने वाली है? क्योंकि ट्रेलर और गानों से हम उस बिहार को देख रहे हैं जो आज से कई साल पहले था। इसके जवाब में नीरज ने कहा कि यह सीरीज आज के बिहार को नहीं बल्कि 90 के दशक के बिहार के हालात पर आधारित है। इसकी कहानी अमित लोढा की किताब 'बिहार डायरीज' पर बेस्ड है।
असली कहानी में दिखा सिनेमाई रोमांच
ट्रेलर में हम देख सकते हैं कि बिहार के ऐसे अपराधी पुलिस के सामने हैं जो खुद को प्रदेश का राजा समझते हैं। दरअसल अमित लोढा उस दौरान SP थे और इस अपराध के दलदल में धसते बिहार के हालातों से खूब लड़े थे। उन्होंने इन घटनाओं को अपनी किताब में दर्ज किया है। नीरज ने इस किताब के राइट्स हमने तब ही लिए थे, जब उन्होंने वो लिखी भी नहीं थी। नीरज ने बताया कि हमारे पास पहले से ही उसके प्री बुकिंग राइट्स थे। उसके बाद उन्होंने वो असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें किताब लिखनी शुरू की। ये सब 5 साल पुरानी बात है। जिसके बाद लॉकडाउन में उन्होंने इस किताब को पढ़ा और फिर इस पर काम शुरू किया।
पहले था फिल्म बनाने का प्लान
नीरज और भव ने बताया कि वह पहले इस कहानी पर एक फिल्म बनाने का विचार कर रहे थे। लेकिन जब किताब को पढ़ा तो उन्हें लगा कि इस पर कम से कम 6-7 घंटे की स्टोरी बनेगी तभी वह बात दर्शकों तक पहुंचेगी। इसलिए नीजर ने इसे वेबसीरीज में के तौर पर बनाने का फैसला किया।
बिहार और झारखंड में हुई शूटिंग
भव धूलिया ने बताया कि इस सीरीज का ज्यादातर हिस्सा बिहार और झारखंड में शूट हुआ है। इसे वहां शूट करने का मकसद इसमें ओरिजनल फील लाना था। वहीं शो के लीड किरदारों में से एक भोजपुरी स्टार रवि किशन ने बताया कि बिहार की धरती पर जाते ही सब कुछ ओरिजनल ही बाहर आता है, इसलिए वहां शूटिंग करना काफी मजेदार था।
काफी बड़ी है स्टार कास्ट
इस शो की स्टार कास्ट की बात करें तो इसमें रवि किशन, नीरज कश्यप, निकिता दत्ता, आशुतोष राणा, अविनाश तिवारी, अविनाश तिवारी, रवि किशन, करण टैकर, करण टैकर, ऐश्वर्या सुष्मिता, अभिमन्यु सिंह, विनय पाठक, श्रद्धा दास, जतिन सरना, अनूप सोनी, अनूप सोनी, अमित आनंद राउत हैं।
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व्यापार घाटा कहीं देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ न दे!
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अगर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की मानें तो अर्थव्यवस्था में सब अच्छा ही अछा है। हमारी अर्थव्यवस्था के दुनिया में पांचवें स्थान पर होने के उत्साह में वे काफी कुछ दावे करने से नहीं चूकतीं। प्रत्यक्ष करों की वसूली में तीस फीसदी का उछाल और जीएसटी की वसूली के नित बढ़ते आँकड़े अर्थव्यवस्था का हाल ठीक होने के दावे को मजबूत करते हैं।
अब इसमें करखनिया सामानों का उत्पादन गिरने, महंगाई के चलते बिक्री कम होने तथा महंगाई और बेरोजगारी का हिसाब निश्चित रूप से शामिल नहीं है। छोटे और सूक्ष्म उद्योग धंधों की हालत और खराब हुई है जिसने रोजगार के परिदृश्य को ज्यादा खराब किया है। और इसमें अगर विदेश व्यापार की ताजा स्थिति और बढ़ते घाटे को जोड़ लिया जाए तो साफ लगेगा कि वित्त मंत्री सिर्फ अर्थव्यवस्था का उतना हिस्सा ही देखना और दिखाना चाहती हैं जो गुलाबी है।
बाजार में निवेश का आना कम होने और डालर की महंगाई को भी जोड़ लें तो हालत चिंता जनक लगने लगती है। यह सही है कि अभी वैश्विक मंडी की आहट भी सुनाई दे रही है और अधिकांश बड़े देशों की हालत भी खराब है लेकिन यह कहने से बेरोजगार लोगों या महंगाई से त्रस्त गृहणियों के जख्मों पर मरहम नहीं लगेगा।
वित्त मंत्री और सरकार के लोग चाहे जो दावे करें विदेश व्यापार का बढ़ता आकार और उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ता घाटा अर्थशास्त्र के सारे जानकारों को चिंतित किए हुए है। लगातार हर महीने आने वाले आँकड़े इन दोनों प्रवृत्तियों में वृद्धि ही दिखा रहे हैं जबकि अगस्त के आँकड़े बताते हैं कि घाटा दस साल का रिकार्ड तोड़ चुका है।
अगस्त में यह 29 अरब डालर को छू चुका है और घाटे की प्रवृत्ति में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। दुनिया भर में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में आई नरमी बदलाव ला सकती थी लेकिन डालर के अस्सी रुपए तक पहुँचने से यह लाभ भी समाप्त सा हों रहा है।
इलेक्ट्रानिक सामानों के निर्यात में कुछ वृद्धि दिख रही है तो जेवरात और रत्नों का आयात उस पर भी पानी फेर रहा है। यह भी माना जाता है कि अचानक बिजलीघरों में कोयले के अकाल ने सरकार के हाथ पाँव फुला दिए थे। इस चक्कर में विदेश से काफी कोयला मंगा लिया गया जबकि अपने यहां सबसे बड़ा कोयला भंडार है। व्यापार संतुलन बिगाड़ने में इसका भी हाथ है। हाल के दिनों में करोना से उबरी दुनिया में रिफाइनिंग का काम बढ़ा था जिसका लाभ हमें भी मिला था। अब खबर आ रही है कि इस काम में भी गिरावट है और यह दस फीसदी तक है।
जाहिर है हमारा विदेश व्यापार का असंतुलन बढ़ ही सकता है, उसके सुधार के लक्षण नहीं हैं। यह अंदेशा अभी भी जारी यूक्रेन युद्ध और ताइवान पर तनातनी से बढ़ा ही है। पर निश्चित रूप से सबसे बड़ा प्रभाव कोरोना का ही रहा। जिसके चलते दुनिया भर में मांग कम हुई है। यूरोप और अमेरिका इस बार जिस तरह की परेशानी में असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें हैं, और अमेरिकी फेडरल रिजर्व जिस तेजी से अपने रेट बढ़ा रहा है उसमें दुनिया भर के पूंजी बाजारों से पैसा गायब होने लगा है।
हमारा केन्द्रीय बैंक भी रेट बढ़ा रहा है। लेकिन सरकार एक सीमा से ज्यादा रेट बढ़ाने के पक्ष में नहीं है क्योंकि इससे महंगाई बढ़ने लगती है। पर असली दिक्कत हमारे माल की मांग काम होने से आई है और दुनिया के बाजारों के जल्दी सुधारने की उम्मीद नहीं की जा रही है। सामान महंगा होने और बेकारी बढ़ने के असर अपने बाजार पर भी है और जाहिर तौर से ये कारण करखनिया उत्पादन के गिरने के हैं।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसी रायटर्स के एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि लगातार तीन तिहाई के आंकड़ों की दिशा, खाद्यान्न की कीमतों में वैश्विक उछाल और गिरते रुपए के चलते भारतीय व्यापार घाटा न सिर्फ एक दशक में सबसे ऊपर जाने वाला है बल्कि यह अर्थव्यवस्था के लिए संकट भी बनेगा। ये चीजें निवेशकों का भरोसा गिरा रही हैं। बाजार से पूंजी गायब दिखने की यह एक बड़ी वजह है।
दुनिया के 18 बड़े अर्थशास्त्रियों से पूछे सवाल पर आधारित यह सर्वेक्षण बताता है कि चालू खाते का घाटा आने वाले महीनों में सकल घरेलू उत्पादन, जीडीपी के पाँच फीसदी तक पहुँच सकता है। पिछली तिमाही अर्थात अप्रैल-जून में यह जीडीपी के 3.6 फीसदी तक चला गया था। जैसा पहले बताया जा चुका है अकेले अगस्त महीने का घाटा 29 अरब डालर का था। उससे पहले जुलाई का घाटा तीस अरब डालर को छू गया था। अगर यह रफ्तार रही तो इन अर्थशास्त्रियों का अनुमान भी कम पड जाएगा। अगर हम जनवरी-मार्च के मात्र 13.4 अरब डालर पर नजर डालें तो अगस्त तक का रिकार्ड डरावना लगने लगेगा।
इस घाटे की भरपाई करनी ही होती है। इस काम में रिजर्व बैंक की सांस फूल रही है। डालर के मुकाबले गिरते रुपए को संभालने में भी उसे काफी सारा पैसा उतारना पड़ता है। इन दोनों कामों में कीमती विदेशी मुद्रा खर्च हों रही है और विदेशी मुद्रा का भंडार तेजी से नीचे आ रहा है। ये चीजें भी रुपए पर दबाव बढ़ा रही हैं और कमाई की गुंजाइश काम हुई है। सामान्य स्थिति में मुद्रा की कीमत गिरने का एक लाभ यह होता है कि आपके विदेश व्यापार में वृद्धि होती है। आपका सामान सस्ता होता है तो मांग बढ़ती है।
अभी दुनिया में, खासकर हमारा सामान (तैयार असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें पोशाक, जेम-ज्वेलरी और इंजीनियरिंग का सामान) मांग न होने के चलते बिक ही नहीं रहा है। इलेक्ट्रानिक सामान बिक भी रहे हैं तो इंजीनियरिंग के सामान की बिक्री में अगस्त में ही पिछले साल की तुलना में 78 फीसदी असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें की गिरावट आ गई है। उधर हमारा तेल का आयात बढ़ता ही जा रहा यही। पिछले साल की तुलना में बीते अगस्त में हमने 37 फीसदी ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया। आयात निर्यात बढ़ाने घटाने के और आँकड़े भी इसी दिशा को बताते हैं लेकिन सबसे बड़ा सच तो व्यापार घाटे के बेहिसाब बढ़ाने से दिखता है। सरकार सोई नहीं होगी लेकिन सारी दुनिया के आर्थिक हालात पर उसका वश चलता हों ऐसा भी नहीं है।
कोयले के बदले रिन्यूएबल एनर्जी को तरजीह देने के मोदी के वादे को मुश्किल में डाल सकती है खराब राजनीति
अगर मोदी चाहते हैं कि उन्हें एक विश्वनेता के रूप में देखा जाए, तो उन्हें सख्त फैसले करने ही होंगे और दुनिया से किए गए अपने वादों को पूरा करना ही होगा, भले ही इससे देश में उन्हें राजनीतिक लाभ न मिलें.
पीएम नरेंद्र मोदी की फाइल फोटो । फोटोः प्रवीण जैन । दिप्रिंट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी शिद्दत से चाहते हैं कि उन्हें एक विश्व नेता के रूप में देखा जाए, और अब उन्हें इस अवतार में उभरने का बढ़िया मौका मिल गया है. लेकिन इसके लिए उन्हें एक कीमत चुकानी पड़ेगी, आसान वोटों के लोभ से उन्हें बचना पड़ेगा.
हाल में जो ‘सीओपी27’ वार्ता खत्म हुई उसमें प्रधानमंत्री मोदी ने कई प्रशंसनीय वादे किए, जिनमें एक यह है कि 2030 तक भारत का अपनी ऊर्जा खपत का आधा हिसा गैर-फॉसिल ईंधन स्रोतों का होगा. ऐसा हुआ तो वह वाकई एक महान उपलब्धि होगी. लेकिन घरेलू सरकारी अधिकारी और मंत्री ऐसे वादों को कमजोर करते रहे हैं.
मोदी सरकार की मजबूरियां
यह एक कड़वी सच्चाई है कि एक साल में गैस की कीमतों में दोगुना इजाफा हो गया है. भारत अपने गैस आधारित बिजली संयंत्रों के लिए आयातित गैस पर निर्भर है. यह स्थिति अच्छी नहीं है. वास्तव में, वित्तमंत्री निर्मला सीतारामण ने कहा है कि हमें इस समस्या के समाधान के लिए कुछ ऐसे फैसले करने होंगे जो पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं होंगे. उन्होंने अक्टूबर में अमेरिका के अपने दौरे के दौरान वाशिंगटन के ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट में कहा, ‘इस स्थिति में, अगर प्राकृतिक गैस हमारी क्षमता से बाहर होगी तब हमें एक हद तक कोयले का इस्तेमाल करना पड़ेगा क्योंकि आपको कम महंगी बिजली चाहिए, और यह सौर या पवन ऊर्जा से हासिल नहीं हो सकती.’
ऐसा कहने वाली वह अकेली नहीं हैं. कुछ गुमनाम सरकारी अधिकारियों ने अंदाजा लगाना शुरू भी कर दिया है और पत्रकारों को यह बयान देने लगे हैं कि भारत को कोयले का उत्पादन बढ़ाना ही होगा क्योंकि प्राकृतिक गैस का उत्पादन स्थिर है और आयातित गैस बहुत महंगी होती जा रही है. इस तरह के गुमनाम बयानों से सरकार अपनी किसी खास योजना के बारे में औपचारिक घोषणा या फैसला करने से पहले उस पर संभावित प्रतिक्रियाओं का अंदाजा लगाती है. अब नज़र रखिए कि देश में कोयले का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाली कोल इंडिया अपने उत्पादन में और कितना इजाफा करती है.
यही मौका है जब प्रधानमंत्री मोदी को आगे आने की जरूरत है. ऊर्जा की कीमत को अपेक्षाकृत कम रखने के लिए भारत को दूसरे महंगे और स्वच्छ स्रोतों की जगह कोयले का इस्तेमाल करना आसान होगा. यह राजनीतिक दृष्टि से भी आकर्षक उपाय है. पश्चिमी देशों की नाराजगी का जोखिम उठाते हुए रूस से तेल का आयात जारी रखकर भारत ने दुनिया को साफ बता दिया है कि कम कीमती ऊर्जा उसकी राष्ट्रीय नीति का अहम हिस्सा है.
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कड़े फैसले लेने वाले विश्व नेता बनते हैं
लेकिन भारत को दुनिया के प्रति एक ज़िम्मेदारी निभानी है. अगर प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उन्हें एक सच्चे राजनेता, एक विश्व नेता के रूप में देखा जाए, तो उन्हें सख्त फैसले करने ही होंगे और दुनिया से किए गए अपने वादों को पूरा करना ही होगा, भले ही इससे देश में उन्हें राजनीतिक लाभ न मिलें.
सख्त फैसला यह होगा कि कोयले का बहिष्कार किया जाए और स्वच्छ ऊर्जा के अपने वादे को पूरा किया जाए. उदाहरण के लिए, परमाणु ऊर्जा को लें. अमेरिका के साथ किया गया बहुचर्चित ‘123 समझौते’ की 2008 में पुष्टि की गई. हालांकि यह एक असैनिक परमाणु समझौता था, लेकिन उसके बाद से एक भी परमाणु बिजली संयंत्र भारत में नहीं लगाया गया है.
वास्तव में, देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता में असली पैसे के लिए इंटरनेट पर काम करें 2009 के बाद से केवल 2.6 जीडब्ल्यू का ही इजाफा हुआ है, जो किसी भी पैमाने से नगण्य है. 2016 में, मोदी सरकार और अमेरिका ने एक संधि की संयुक्त घोषणा की थी जिसके तहत दोनों देश भारत में छह परमाणु रिएक्टर का निर्माण करने वाले थे. कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है. अगर मोदी परमाणु बिजली संयंत्र चाहेंगे तो वह बनेगा, यह सिर्फ उनकी इच्छा शक्ति पर निर्भर है.
इसी तरह, सरकार की नीतियों की वजह से बिजली के दूसरे गैर-फॉसिल स्रोतों का भी विस्तार नहीं हो रहा है. दिसंबर 2017 में, सरकार ने पवन ऊर्जा सेक्टर के लिए ‘रिवर्स ऑक्सन बिडिंग’ प्रक्रिया लागू की जिसके तहत बोली लगाने वाले जिस दर पर बिजली बेचेंगे उसके आधार पर परियोजनाओं के लिए बोली लगाएंगे. दर जितनी कम होगी, बोली उतनी बड़ी होगी.
नई नीति इतनी अलोकप्रिय हुई कि पवन ऊर्जा सेक्टर में—जिसमें पिछले चार वर्षों में सालाना औसतन करीब 3.3 जीडब्ल्यू का उत्पादन हुआ—क्षमता वृद्धि 2018-19 में केवल 0.8 जीडब्ल्यू की हुई. इसके अगले वर्ष 1.1 जीडब्ल्यू की क्षमता वृद्धि हुई.
पवन ऊर्जा के विशेषज्ञों के मुताबिक असली बात यह है कि ऊर्जा के स्रोत के रूप में पवन ऊर्जा इतना परिवर्तनशील स्रोत है कि ‘रिवर्स ऑक्सन’ कारगर नहीं हो सकता है. अगर कंपनियां यह होड़ करने लगें कि कौन सबसे कम कीमत पर बिजली बेच सकती है, तो खतरा यह है कि पवन ऊर्जा के उत्पादन की लागत बढ़ती है या उत्पादन गिरता है, तो उनकी परियोजनाएं लाभकारी नहीं रह जाएंगी.
यह एक आसान उपाय है. नीति में सिर्फ ऐसे प्रावधान करने की जरूरत है जिससे पवन ऊर्जा के डेवलपरों के लिए जोखिम कम हो. खबर है कि सरकार इस दिशा में काम कर रही है. लेकिन यह काम जल्दी करने की जरूरत है.
सरकार को इसके साथ ही छतों पर लगाए जाने वाले सोलर पैनल्स के मसले को भी ठीक करना है. प्रधानमंत्री मोदी ने लक्ष्य रखा है कि सोलर पैनल्स से 2022 तक 40 जीडब्ल्यू की क्षमता हासिल की जाएगी. अभी यह क्षमता 7.5 जीडब्ल्यू की ही है. इसकी मुख्य वजह यह है कि राज्य सरकारें घरों में खपत की जाने वाली बिजली पर छूट दे रही हैं, और लोगों को सोलर पैनल्स पर पैसा लगाना फायदेमंद नहीं लग रहा है. अगर आपको सस्ते में बिजली मिल रही है, इसे और सस्ते में हासिल करने के लिए कुछ लाख रुपये और क्यों खर्च किए जाएं?
यह एक पहेली है. बिजली की नीची दरें सभी दलों को वोट बटोरने का आसान उपाय लगता है. इसलिए राज्यों को बिजली की दरें बढ़ाने के लिए कहने का कोई असर नहीं होगा, भले ही यह वित्तीय रूप से जरूरी हो.
प्रधानमंत्री मोदी ने परमाणु और अक्षय ऊर्जा की क्षमताएं बढ़ाने का जो वादा शर्म अल शेख में किया था वह दुनिया में उनका कद ऊंचा कर सकता है, भले ही इसका अर्थ कोयले से सस्ते में पैदा होने वाली बिजली से मिलने वाले कुछ वोट गंवाने पड़ें. लेकिन यही तो वक़्त है जननेता से विश्व नेता बनने का.
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