प्रवृत्ति पर व्यापार

तकनीकी और मौलिक विश्लेषण

तकनीकी और मौलिक विश्लेषण

तकनीकी विश्लेषण और मौलिक विश्लेषण क्या है? मतभेद

तकनीकी विश्लेषण और मौलिक विश्लेषण दो अध्ययन हैं जो बाजार व्यवहार को मापने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं। स्टॉक एक्सचेंज में काम करते समय दोनों आवश्यक होते हैं और पूर्वानुमान या भविष्य के बाजार के रुझान में बहुत उपयोगी होते हैं। जबकि बुनियादी विश्लेषण अधिक गहन शोध पर केंद्रित है, विभिन्न कारकों का अध्ययन किया जाना चाहिए। तकनीकी विश्लेषण सरल है और बाजार के रुझान की भविष्यवाणी करने के लिए एक के-लाइन चार्ट, पैटर्न और डेटा की सुविधा देता है।

दोनों अध्ययनों का उपयोग बाजार के अल्पकालिक और दीर्घकालिक मूल्य को मापने के लिए किया जाता है। उनकी उच्च विश्वसनीयता के कारण, सभी प्रकार के निवेशक लगभग किसी भी प्रकार के निवेश में इन अध्ययनों का उपयोग कर सकते हैं। उन लोगों के लिए जिनके पास बहुत कम पैसा है और जिनके पास बहुत बड़ा निवेश है।

तकनीकी विश्लेषण क्या है?

तकनीकी विश्लेषण क्या है? तकनीकी विश्लेषण विधि मौलिक विश्लेषण क्या है? बुनियादी विश्लेषण उपकरण तकनीकी विश्लेषण और मौलिक विश्लेषण के बीच अंतर

तकनीकी विश्लेषण स्टॉक मार्केट विश्लेषण का एक अध्ययन है। एल्गोरिदम और गणितीय प्रक्रियाओं के माध्यम से ग्राफिक्स, डेटा और पैटर्न का उपयोग करें। लघु, मध्यम, और दीर्घकालिक बाजार मूल्य की भविष्यवाणी करने की क्षमता, हालांकि अल्पावधि में बाजार के मूल्यांकन में तकनीकी विश्लेषण का उपयोग करने की अधिक संभावना है।

तकनीकी विश्लेषण मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका से था और 19 वीं शताब्दी के अंत में अर्थशास्त्री चार्ल्स हेनरी टॉड द्वारा पेश किया गया था। इसने डॉव थ्योरी बनाई, लेकिन इसकी वास्तविक प्रगति अर्थशास्त्री राल्फ नेल्सन एलियट से हुई। जिन्होंने स्टॉक मार्केट में तकनीकी विश्लेषण लाने के लिए अपने इलियट वेव सिद्धांत का इस्तेमाल किया और फिर इसे भविष्य के बाजार में पेश किया।

तकनीकी विश्लेषण को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है: ग्राफिक विश्लेषण और एक सख्त अर्थ में विश्लेषण। ग्राफिकल विश्लेषण अन्य उपकरणों की सहायता के बिना K- लाइन चार्ट में प्रदर्शित जानकारी का विश्लेषण करता है। उपयोग संकेतकों का सख्त विश्लेषण। दूसरी ओर, कुछ मानों से निकाले गए चर का उपयोग संकेतकों के निर्माण के लिए किया जाता है।

तकनीकी विश्लेषण विधि

तकनीकी विश्लेषण अक्सर बाजार पूर्वानुमान के लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग करता है, जिनमें शामिल हैं:

प्रवृत्ति: विधि K- लाइन चार्ट में दो बिंदुओं की सीधी रेखा संयोजन पर आधारित है। जितनी बार इस रेखा का परीक्षण किया जाता है, यह उतना ही अधिक महत्वपूर्ण होता है। तकनीकी पैटर्न: ये ग्राफ में मौजूद ग्राफ होते हैं, जिन्हें अलग-अलग तरीकों से वर्गीकृत किया जाता है और भविष्य कहनेवाला मूल्य होता है। निराशा: मूल्य में प्रतिशत परिवर्तन का एक उपाय है निराशा। सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला प्रतिशत 50% है। दोलन: इनका उपयोग बाजार में अधिक विकसित और / या बिक्री की स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है। मूविंग एवरेज: ये ऐसे मेट्रिक्स हैं जो यह पता लगाने के लिए सिग्नल खरीदना और बेचना चाहते हैं कि क्या कोई ट्रेंड अभी भी मान्य है।

इनमें से प्रत्येक उपकरण तकनीकी विश्लेषण के माध्यम से बाजार के रुझान को समझता है।

मौलिक विश्लेषण क्या है?

फंडामेंटल एनालिसिस भी स्टॉक मार्केट एनालिसिस से जुड़ी एक विधि है, जिसके जरिए किसी एसेट की सही कीमत मांगी जाती है। यहां, हम विभिन्न कारकों का विश्लेषण करते हैं जो कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं। मौलिक विश्लेषण में विचार किए गए विभिन्न कारक वे हैं जो बाजार की संपत्ति की कीमत में बदलाव का कारण हो सकते हैं। इसलिए, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए।

मूल विश्लेषण उपकरण

मौलिक विश्लेषण संपत्ति के वास्तविक मूल्य को पकड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है; इस प्रकार के मूल्यों की गणना करने के लिए उपलब्ध उपकरण हैं:

अनुपात की गणना। कंपनी मूल्यांकन प्रौद्योगिकी पर्यावरण विश्लेषण सामान्य आर्थिक जानकारी कोई भी जानकारी जो उत्पाद का मूल्य बदलती है

तकनीकी विश्लेषण और मौलिक विश्लेषण क्या है? असहमति चित्रण

तकनीकी विश्लेषण और मौलिक विश्लेषण के बीच अंतर

मौलिक विश्लेषण विभिन्न राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संदर्भों का विश्लेषण करता है जो भविष्य के बाजार मूल्य निर्धारित कर सकते हैं। इसलिए, तकनीकी विश्लेषण के विपरीत, मौलिक विश्लेषण विशुद्ध रूप से भविष्य के बाजार पूर्वानुमानों पर केंद्रित है। विभिन्न बाहरी और आंतरिक परिदृश्यों का मूल्यांकन करें जो स्टॉक की कीमतों को बदल सकते हैं। यद्यपि तकनीकी विश्लेषण K- लाइन चार्ट, मॉडल और डेटा पर अधिक आधारित है, लेकिन यह स्टॉक मार्केट विश्लेषण में मौलिक विश्लेषण के मूल्य कारकों को ध्यान में नहीं रखता है।

यद्यपि बुनियादी विश्लेषण का एक मजबूत सैद्धांतिक आधार है, सांख्यिकी के क्षेत्र में अकादमिक शोध निर्धारित किया गया है; भविष्य की संपत्ति की कीमतों की भविष्यवाणी करने में मौलिक विश्लेषण से बेहतर तकनीकी विश्लेषण है।

सूचना का स्रोत: TECNOLOGIA से 0x जानकारी से संकलित। कॉपीराइट लेखक के स्वामित्व में है और बिना अनुमति के पुन: पेश नहीं किया जा सकता है।

तकनीकी और मौलिक विश्लेषण

amit shah

अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की रिपोर्ट ने भाषा के संबंध में अब तक की मान्य, स्वीकृत और संविधानसम्मत नीति को उलट कर पूरे देश पर जबरिया हिंदी थोपने का रास्ता खोलने की आशंका साफ़ - साफ़ सामने ला दी है। इस समिति की दो सिफारिशें इस इरादे को स्पष्ट करती हैं। इस रिपोर्ट की एक सिफारिश कहती है कि "देश में तमाम तकनीकी तथा गैर तकनीकी संस्थानों में पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों का माध्यम हिंदी होनी चाहिए और अंगरेजी को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए।"

इसी रिपोर्ट की एक अन्य सिफारिश सरकारी विज्ञापनों के बजट का 50 प्रतिशत हिंदी भाषी विज्ञापनों के लिए आरक्षित करने की है। इस सिफारिश के इंडिया दैट इज भारत पर क्या प्रभाव होंगे इन पर नजर डालने से पहले इसके असली मंतव्य को देखना सही होगा।

क्या यह गुजराती भाषी अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति की इस घोषणा के पीछे उछाल लेता हिन्दी प्रेम है ? नहीं। यह मसला जितना दिखता है उतना भर नहीं है ; इरादा हिंदी भाषा के सम्मान का बिलकुल नहीं है, बल्कि जैसा कि, इस राज में, अब तक तिरंगे सहित लगभग सारे स्थापित प्रतीकों और साझी विरासतों के साथ किया गया है वही हिंदी के साथ करने का है।

उसमे ई की जगह ऊ की मात्रा लगाने का है ; हिंदी के हिन्दुत्वीकरण का है। यह जैसा कि दावा किया गया है, अंग्रेजी के वर्चस्व को खत्म करने के लिए नहीं है, उस बहाने, उसके नाम पर हिंदी के वर्चस्व को स्थापित करने की कोशिश है। जर्मनी के नाज़ियों और इटली के फासिस्टों से एक भाषा - एक नस्ल - एक संस्कृति - एक धर्म की भौंडी समझदारी के आरएसएस नजरिये को अमल में लाने की है।

हिंदी - या और किसी भी भाषा को - किसी धर्म विशेष से बांधना उसके धृतराष्ट्र-आलिंगन के सिवा और कुछ नहीं । ऐसे तत्वों की एक सार्वत्रिक विशेषता है ; वे न हिंदी ठीक तरह से जानते है न हिंदी के बारे में कुछ जानते हैं ।

अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति को तो हिंदी के बारे में भी कुछ नहीं पता। इन्हे नहीं मालूम की हिंदी एक ताज़ी ताज़ी आधुनिक भाषा है - अमीर खुसरो ने हिंदवी के रूप में इसकी शुरुआत की थी।

उसके बाद के वर्षों में, अनेक सहयोगी भाषाओं, बोलियों के जीवंत मिलन से यह अपने मौजूदा रूप में आयी है। जब तक इसका यह अजस्र स्रोत बरकरार है , जब तक इसकी बांहें जो भी श्रेष्ठ और उपयोगी है का आलिंगन करने के लिए खुली हैं, जब तक इसकी सम्मिश्रण उत्सुकता बनी है तब तक इसकी जीवंतता है। हिंदी खुद बहुवचन - हिन्दियां - है। बिहार की हिंदी, मध्यप्रदेश की हिंदी नहीं हैं, उत्तर प्रदेश के अवध की हिंदी और बिहार के मगध की हिंदी ही नहीं खुद उप्र के बघेलखण्ड, ब्रज और रूहेलखंड की हिन्दियाँ अलग अलग हैं।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा और भिलाई की हिन्दियाँ भिन्न हैं। इसका संस्कृतीकरण करके इसे क्लिष्ट और समझ से परे बनाना खुद इस भाषा और इसे बोलने वालों के साथ मजाक है। बिना समुचित तैयारी के मध्यप्रदेश में चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में दिए जाने की बेतुकी घोषणा और उसके लिए जारी की गयी कौतुकी भाषा में तैयार पाठ्यपुस्तकों ने खुद हिंदी को हास्यास्पद बनाया है। एक ऐसा विज्ञान जिसकी सारी तकनिकी तकनीकी और मौलिक विश्लेषण जानकारियो का उदगम और स्रोत हिंदी से बाहर का है, उसका जबरिया हिन्दीकरण कहीं नहीं ले जाने वाला। जो इस कोर्स में पढ़कर निकलेंगे उन्हें कोई डॉक्टर नहीं मानने वाला। इसी तरह का एक मजाक यूपी में ए से अर्जुन और बी से बलराम पढ़ाने का हो रहा है।

इस गिरोह को नहीं पता कि भारत दुनिया का सबसे बहुभाषी देश है। यह वह देश है जहां "कोस कोस में पानी बदले / चार कोस में वाणी" की लोकोक्तियाँ सिर्फ हिंदी में नहीं, सभी भाषाओं में मिलती हैं। अकेले संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषायें हैं। इस अनुसूची का प्रावधान करते हुए संविधान निर्माताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ये सभी भाषायें राष्ट्रभाषा - नेशनल लैंग्वेज - हैं। सब बराबर है।

भारत की भाषाओं के ताजे अध्ययन के अनुसार देश में 1652 मातृभाषाएं हैं। (इंडिया ; ए कंट्री स्टडी बाय जेम्स हेल्टमैन और रॉबर्ट एल वोर्डेन (1995) । 1921 की जनगणना ने चार भाषा परिवारों की 188 भाषाओं को सूचीबद्ध किया था। इसके अलावा कोई 19500 बोलियां हैं। दुनिया की अब तक प्रचलित और व्यवहार में लाई जाने वाली प्राचीनतम भाषाओं में शामिल तमिल और संथाली भारत की ही भाषाएँ हैं। भाषाओं को लेकर हुए सभी अध्ययन संख्या में कुछ फर्क के साथ इन्हे 200 से कम नहीं बताते। यह विविधता भारतीय भूखंड की समृद्धि और सामर्थ्य है।

भाषा रातोंरात नहीं बनती। उसका विकास हजारों वर्षों तक चली प्रक्रिया से होता है। भाषा सिर्फ संवाद, कम्युनिकेशन का माध्यम या कैरियर की सीढ़ी नही होती । भाषा व्यक्ति और मनुष्यता को संस्कारित करती है, परवरिश करती है । भाषा समाज के प्रति दृष्टिकोण को ढालती है । वह एक तरह से एक टूल होती है, समझने बूझने का, विश्लेषण करने का और बाद में उसे संचित कर औरों तक पहुंचाने का।

इस तरह भाषा व्यक्ति को लोक और समाज से जोड़ती है - जो फिर से उस लोक और समाज की चेतना में वृध्दि करता है। मातृभाषा इसीलिए सर्वश्रेष्ठ भाषा मानी जाती है । पढ़ाने, लिखाने के लिए भी और उस लोक के लायक इंसान बनाने के लिए भी । इसलिए नही कि वह उसे घुट्टी में मिली होती है, बल्कि तकनीकी और मौलिक विश्लेषण यह उसे उस जगत से जोड़ती है - उस जगत की अब तक की संचित ज्ञान परंपरा से जोड़ती है, जहां उसकी उत्पत्ति हुई है और 99 % मामलों में जहां उसे जीवन गुजारना है। भाषा - मातृभाषा - सिर्फ शिल्प, व्याकरण में नही होती वह कहानियों में, लोरियों में, तकनीकी और मौलिक विश्लेषण तकनीकी और मौलिक विश्लेषण मुहावरों में, पहेलियों में भी होती है । वह व्यक्ति को बनाती है।

उसका व्यक्तित्व संवारती है । उसे इंसान जैसा बनाती है । हिंदी के आरम्भिक बड़े साहित्यकार भारतेन्दु हरिशचंद्र अपने काव्य "निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल'" कहते समय इसी के महत्त्व को बता रहे होते हैं। ध्यान रहे वे निज भाषा की बात कर रहे हैं - सिर्फ एक भाषा की नहीं। हर भाषा का अपना उद्गगम है, सौंदर्य है, आकर्षण है, उनकी मौलिक अंतर्निहित शक्ति है । बाकी को कमतर समझने की यह आत्ममुग्धता दास भाव भी जगाती है, संकीर्ण और विस्तारवादी भी बनाती है।

यह खुद हिंदी को अनेक समृद्ध बोलियों से अलग करता है। उसका तत्समीकरण कर उसे उसके स्वाभाविक गुण से वंचित कर खास तरह के सामाजिक राजनीतिक वर्चस्व का रास्ता तैयार करता है।

अंग्रेजी की जगह हिंदी का वर्चस्व कायम करना, भारत के नागरिकों की निज भाषा - मातृभाषा - का अधिकार उनसे छीनने जैसा है। यही "एक संस्कृति, एक अलां एक फलां" वाला वर्चस्वकारी सोच है जो एक भाषा से प्यार और उसके मान का मतलब बाकी भाषाओं का धिक्कार और तिरस्कार मानता है । किसी एक भाषा को उत्कृष्ट मानकर बाकी भाषाएँ निकृष्ट मानता है । श्रेष्ठता बोध दूसरे को निकृष्ट मानकर रखना एक तरह की हीन ग्रंथि है - मनोरोग है । आरएसएस का भारतीय भाषाओं के प्रति इसी तरह का रुख रहा है। यह उनकी उत्तरी भूभाग - मनुस्मृति में दर्ज आर्यावर्त - को ही भारत मानने की समझदारी है। यह विविधता में एकता के सार और राज्यों के संघ के रूप दोनों को नकारने के लिए हिंदी को सीढ़ी बनाने की कोशिश है - मगर यहीं तक रुकेगी नहीं। संघ के हिसाब से उनके एक नस्ल और धर्म - आर्य - की भाषा संस्कृत है। वह देव भाषा जिसे पढ़ने लिखने बोलने का हक़ सिर्फ द्विजों, उनमे भी पुरुषों, का है। बाकी सब राक्षसी, असुर भाषाएँ हैं।

तात्कालिक रूप से अमित शाह समिति की सिफारिशें केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी जैसे उच्च तकनीकी संस्थानों के हिन्दीकरण के जरिये भारत की उस विराट आबादी को शिक्षा और इस तरह नौकरियों के अवसर और अधिकार से वंचित करने की हैं। मगर अपने अंतिम निष्कर्ष में यह एक ख़ास तरह के सामाजिक वर्चस्व की कायमी की है। इसलिए हिंदी भाषा भाषियों के लिए भी जरूरी हो जाता है कि वे संसदीय समिति के सुझाव के बाकी इरादों पर आने से पहले इसमें खुद हिंदी और हिन्दुस्तान के लिए निहित खतरों को ठीक ठीक तरह से समझें।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक लोकजतन पत्रिका के संपादक हैं।)

चार्ट किस बारे में बात करते हैं: तकनीकी विश्लेषण क्या है, और निवेशक इसका उपयोग क्यों करते हैं

एक्सचेंज पर कारोबार करने वाली परिसंपत्तियों का विश्लेषण करने के कई तरीके हैं। उदाहरण के लिए, कंपनियों और उनके शेयरों के मामले में, मौलिक विश्लेषण है जो निवेशकों को वर्तमान व्यापार मूल्यांकन और इसकी संभावनाओं की वैधता को समझने की अनुमति देता है। एक अन्य विधि तकनीकी विश्लेषण है, जिसमें ऐतिहासिक डेटा का अध्ययन करना शामिल है, जिसमें एक वित्तीय साधन की कीमत और व्यापारिक मात्रा में परिवर्तन शामिल हैं।

इन्वेस्टोपेडिया पोर्टल बताता है कि तकनीकी विश्लेषण क्या है, आप इस पर कितना भरोसा कर सकते हैं और आधुनिक निवेशक इस उपकरण का उपयोग कैसे करते हैं। हम आपके ध्यान में इस सामग्री के मुख्य विचार प्रस्तुत करते हैं।

नोट : संकेतक एक्सचेंज-ट्रेडेड एसेट्स के साथ काम करने के लिए सिर्फ एक सहायक उपकरण हैं, वे सकारात्मक ट्रेडिंग परिणामों की गारंटी नहीं देते हैं। संकेतकों के उपयोग को समझने के लिए, आपको एक ट्रेडिंग टर्मिनल (उदाहरण के लिए, SMARTx ), साथ ही साथ ब्रोकरेज खाते की आवश्यकता है - आप इसे ऑनलाइन खोल सकते हैं। आप आभासी पैसे के साथ एक परीक्षण खाते का उपयोग करके अभ्यास कर सकते हैं ।

तकनीकी विश्लेषण: एक संक्षिप्त इतिहास

शेयरों और रुझानों के तकनीकी विश्लेषण की अवधारणा सैकड़ों वर्षों से आसपास है। यूरोप में, व्यापारी जोसेफ डी ला वेगा ने 17 वीं शताब्दी में हॉलैंड में बाजारों के व्यवहार की भविष्यवाणी करने के लिए तकनीकी विश्लेषण प्रथाओं का उपयोग किया।

अपने आधुनिक रूप में, तकनीकी विश्लेषण का गठन चार्ल्स डॉव, विलियम पी। हैमिल्टन, रॉबर्ट रिया, डॉव सिद्धांत के लेखक और निकोलस डर्वस जैसे आम लोगों सहित अन्य फाइनेंसरों द्वारा किया गया था।

इन लोगों ने एक बाजार की कल्पना की जिसमें लहरें शामिल हैं जो चार्ट पर किसी विशेष संपत्ति के मूल्य और ट्रेडिंग वॉल्यूम के उच्च और चढ़ाव के अनुरूप हैं। तकनीकी विश्लेषण की सभी अवधारणाओं को एक साथ लाया गया और 1948 में प्रकाशित स्टॉक मार्केट ट्रेंड्स की टेक्निकल एनालिसिस बुक में रॉबर्ट डी। एडवर्ड्स और जॉन मैगी द्वारा संक्षेप में प्रस्तुत किया गया।

1990 के दशक में, जापानी कैंडलस्टिक्स के विश्लेषण पर आधारित एक तकनीक ने संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकप्रियता हासिल की - इस विधि का उपयोग जापानी व्यापारियों द्वारा चावल के व्यापार में रुझान निर्धारित करने के लिए सैकड़ों साल पहले किया गया था। निवेशकों ने बाजार के उलटफेर की भविष्यवाणी करने के लिए मूल्य आंदोलनों के नए पैटर्न को देखने के प्रयास में स्टॉक चार्ट का विश्लेषण किया।

के लिए तकनीकी विश्लेषण क्या है?

तकनीकी विश्लेषण, इसके मूल में, उन पर खेलने और पैसा कमाने के लिए भविष्य के मूल्य आंदोलनों की भविष्यवाणी करने का एक प्रयास है। ट्रेडर्स स्टॉक और अन्य वित्तीय साधनों के चार्ट पर संकेतों की तलाश करते हैं जो रुझानों के उद्भव या इसके विपरीत, उनके अंत का संकेत दे सकते हैं।

सामान्य तौर पर, तकनीकी विश्लेषण शब्द मूल्य आंदोलनों की व्याख्या करने के लिए दर्जनों रणनीतियों को जोड़ता है। उनमें से अधिकांश यह निर्धारित करने के आसपास बनाए गए हैं कि क्या वर्तमान प्रवृत्ति पूरी होने के करीब है, और यदि नहीं, तो उलट की उम्मीद कैसे करें।

कुछ तकनीकी विश्लेषण संकेतक प्रवृत्ति लाइनों का उपयोग करते हैं, अन्य जापानी कैंडलस्टिक्स का उपयोग करते हैं, और कुछ ऐसे हैं जहां एक व्यापारी गणितीय विज़ुअलाइज़ेशन का विश्लेषण करता है। चार्ट पर एक विशिष्ट पैटर्न व्यापार के लिए वांछित प्रविष्टि या निकास बिंदु का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

तकनीकी विश्लेषण के दो मुख्य प्रकार चार्ट पर पैटर्न खोज रहे हैं या तकनीकी, सांख्यिकीय संकेतक का उपयोग कर रहे हैं। में इस लेख, हम लोकप्रिय तकनीकी विश्लेषण संकेतकों में से कुछ को देखा।

एक व्यापार से चिह्नित प्रविष्टि और निकास बिंदुओं के साथ संकेतक "चलती औसत"।

इस प्रकार के विश्लेषण का मुख्य सिद्धांत यह है कि कीमत सभी मौजूदा जानकारी को दर्शाती है जो बाजार को प्रभावित करती है। इसका मतलब यह है कि यह सभी कारकों का विश्लेषण करने का कोई मतलब नहीं है, जैसे कि व्यापार की बुनियादी बातों, अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति या बाजार में कुछ विकास के नए विकास। एक कीमत है, यह पहले से ही सब कुछ के बारे में बोलता है, लेकिन कीमतें चक्रीय रूप से चलती हैं।

तकनीकी और मौलिक विश्लेषण के समर्थकों के दृष्टिकोण में अंतर महत्वपूर्ण हैं। जबकि पूर्व बाजार के ज्ञान में विश्वास करता है, जो मूल्य के माध्यम से रुझान बनाता है, उत्तरार्द्ध का मानना ​​है कि बाजार अक्सर वास्तव में महत्वपूर्ण कारकों को कम करके आंका जाता है। फंडामेंटलिस्टों का मानना ​​है कि चार्ट पैटर्न किसी व्यवसाय के लेखांकन आंकड़ों की तुलना में कम महत्वपूर्ण हैं जिनके स्टॉक का निवेशक द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है।

तकनीकी विश्लेषण की सीमाएं

तकनीकी विश्लेषण का मुख्य नुकसान यह है कि यहां कोई भी निर्णय चार्ट की व्याख्या के आधार पर किया जाता है। एक व्यापारी व्याख्या में गलती कर सकता है, या एक सही परिकल्पना के गठन के लिए ट्रेडिंग वॉल्यूम नगण्य हो जाता है, संकेतक के लिए समय अवधि जैसे कि चलती औसत बहुत बड़ी या बहुत छोटी हो सकती है, आदि।

और एक और महत्वपूर्ण तकनीकी और मौलिक विश्लेषण कारक: जितना अधिक लोकप्रिय तकनीकी विश्लेषण और इसकी विशिष्ट तकनीक और संकेतक बनते हैं, उतना ही यह समझना मुश्किल हो जाता है कि क्या कीमत ने चार्ट पर खुद एक निश्चित पैटर्न बनाया है, या हजारों निवेशक एक ही तस्वीर देखते हैं, मानते हैं कि बाजार गिर जाएगा और बिक्री शुरू होगी। उसकी गिरावट तेज?

किसी भी मामले में, तकनीकी विश्लेषण बाजार का विश्लेषण करने के तरीकों में से एक है। अनुभवहीन निवेशकों को अकेले इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। वर्चुअल मनी के साथ परीक्षण खाते का उपयोग करके ट्रेडिंग टर्मिनल में उपलब्ध तकनीकी विश्लेषण दृष्टिकोण और मौजूदा संकेतकों का अध्ययन करना बेहतर है ।

हिन्दी; ई की जगह ऊ की मात्रा : हिंदी के हिन्दुत्वीकरण की साजिश

अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की रिपोर्ट (Report of the parliamentary committee headed by Amit Shah) ने भाषा के संबंध में अब तक की मान्य, स्वीकृत और संविधानसम्मत नीति को उलट कर पूरे देश पर जबरिया हिंदी थोपने का रास्ता खोलने की आशंका साफ़-साफ़ सामने ला दी है।

पूरे देश पर बलात् हिंदी थोपने का रास्ता

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की रिपोर्ट (Report of the parliamentary committee headed by Amit Shah) ने भाषा के संबंध में अब तक की मान्य, स्वीकृत और संविधानसम्मत नीति को उलट कर पूरे देश पर जबरिया हिंदी थोपने का रास्ता खोलने की आशंका साफ़-साफ़ सामने ला दी है।

अमित शाह की अध्यक्षता वाली इस संसदीय समिति की दो सिफारिशें इस इरादे को स्पष्ट करती हैं।

रिपोर्ट की एक सिफारिश कहती है कि ‘देश में तमाम तकनीकी तथा गैर तकनीकी संस्थानों में पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों का माध्यम हिंदी होनी चाहिए और अंगरेजी को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए।’

इसी रिपोर्ट की एक अन्य सिफारिश सरकारी विज्ञापनों के बजट का 50 प्रतिशत हिंदी भाषी विज्ञापनों के लिए आरक्षित करने की है। इस सिफारिश के ‘इंडिया दैट इज भारत’ पर क्या प्रभाव होंगे इन पर नजर डालने से पहले इसके असली मंतव्य को देखना सही होगा।

क्या यह वाकई गुजराती भाषी अमित शाह का हिन्दी प्रेम है ?

क्या यह गुजराती भाषी अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति की इस घोषणा के पीछे उछाल लेता हिन्दी प्रेम है ? नहीं।

यह मसला जितना दिखता है उतना भर नहीं है; इरादा हिंदी भाषा के सम्मान का बिलकुल नहीं है, बल्कि जैसा कि, इस राज में, अब तक तिरंगे सहित लगभग सारे स्थापित प्रतीकों और साझी विरासतों के साथ किया गया है वही हिंदी के साथ करने का है। उसमें ई की जगह ऊ की मात्रा लगाने का है; हिंदी के हिन्दुत्वीकरण का है। यह, जैसा कि दावा किया गया है, अंग्रेजी के वर्चस्व को खत्म करने के लिए नहीं है, उस बहाने, उसके नाम पर हिंदी के वर्चस्व को स्थापित करने की कोशिश है। जर्मनी के नाज़ियों और इटली के फासिस्टों से एक भाषा – एक नस्ल – एक संस्कृति – एक धर्म की भौंडी समझदारी के आरएसएस नजरिये को अमल में लाने की है।

हिंदी – या और किसी भी भाषा को – किसी धर्म विशेष से बांधना उसके धृतराष्ट्र-आलिंगन के सिवा और कुछ नहीं। ऐसे तत्वों की एक सार्वत्रिक विशेषता है; वे न हिंदी ठीक तरह से जानते हैं, न हिंदी के बारे में कुछ जानते हैं।

अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति को तो हिंदी के बारे में भी कुछ नहीं पता। इन्हें नहीं मालूम कि हिंदी एक ताज़ी ताज़ी आधुनिक भाषा है – अमीर खुसरो ने हिंदवी के रूप में इसकी शुरुआत की थी। उसके बाद के वर्षों में, अनेक सहयोगी भाषाओं, बोलियों के जीवंत मिलन से यह अपने मौजूदा रूप में आयी है। जब तक इसका यह अजस्र स्रोत बरकरार है, जब तक इसकी बांहें, जो भी श्रेष्ठ और उपयोगी है, का आलिंगन करने के लिए खुली हैं, जब तक इसकी सम्मिश्रण उत्सुकता बनी है, तब तक इसकी जीवंतता है।

हिंदी के कितने रूप?

हिंदी खुद बहुवचन – हिन्दियां – है। बिहार की हिंदी, मध्य प्रदेश की हिंदी नहीं हैं, उत्तर प्रदेश के अवध की हिंदी और बिहार के मगध की हिंदी ही नहीं खुद उप्र के बघेलखण्ड, ब्रज और रूहेलखंड की हिन्दियाँ अलग-अलग हैं। छत्तीसगढ़ के सरगुजा और भिलाई की हिन्दियाँ भिन्न हैं। इसका संस्कृतीकरण करके इसे क्लिष्ट और समझ से परे बनाना खुद इस भाषा और इसे बोलने वालों के साथ मजाक है।

मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में दिए जाने की बेतुकी घोषणा और उसके लिए जारी की गयी कौतुकी भाषा में तैयार पाठ्यपुस्तकों ने खुद हिंदी को हास्यास्पद बनाया है। एक ऐसा विज्ञान जिसकी सारी तकनीकी जानकारियों का उद्गम और स्रोत हिंदी से बाहर का है, उसका जबरिया हिन्दीकरण कहीं नहीं ले जाने वाला। जो इस कोर्स में पढ़कर निकलेंगे, उन्हें कोई डॉक्टर नहीं मानने वाला। इसी तरह का एक मजाक यूपी में ए से अर्जुन और बी से बलराम पढ़ाने का हो रहा है।

इस गिरोह को नहीं पता कि भारत दुनिया का सबसे बहुभाषी देश है। यह वह देश है जहां ‘कोस कोस में पानी बदले / चार कोस में वाणी’ की लोकोक्तियाँ सिर्फ हिंदी में नहीं, सभी भाषाओं में मिलती हैं। अकेले संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषायें हैं। इस अनुसूची का प्रावधान करते हुए संविधान निर्माताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ये सभी भाषायें राष्ट्रभाषा – नेशनल लैंग्वेज – हैं। सब बराबर है।

भारत की भाषाओं के ताजे अध्ययन के अनुसार देश में 1652 मातृभाषाएं हैं। (इंडिया; ए कंट्री स्टडी बाय जेम्स हेल्टमैन और रॉबर्ट एल वोर्डेन (1995)

1921 की जनगणना ने चार भाषा परिवारों की 188 भाषाओं को सूचीबद्ध किया था। इसके अलावा कोई 19500 बोलियां बोलियां हैं। दुनिया की, अब तक प्रचलित और व्यवहार में लाई जाने वाली प्राचीनतम भाषाओं में शामिल तमिल और संथाली भारत की ही भाषाएँ हैं।

भाषाओं को लेकर हुए सभी अध्ययन संख्या में कुछ फर्क के साथ इन्हें 200 से कम नहीं बताते। यह विविधता भारतीय भूखंड की समृद्धि और सामर्थ्य है।

भाषा कैसे बनती है?

भाषा रातोंरात नहीं बनती। भाषा का विकास हजारों वर्षों तक चली प्रक्रिया से होता है। भाषा सिर्फ संवाद, कम्युनिकेशन का माध्यम या कैरियर की सीढ़ी नहीं होती। भाषा व्यक्ति और मनुष्यता को संस्कारित करती है, परवरिश करती है। भाषा समाज के प्रति दृष्टिकोण को ढालती है। भाषा एक तरह से एक टूल होती है, समझने बूझने का, विश्लेषण करने का और बाद में उसे संचित कर औरों तक पहुंचाने का। इस तरह भाषा व्यक्ति को लोक और समाज से जोड़ती है – जो फिर से उस लोक और समाज की चेतना में वृद्धि करता है।

मातृभाषा सर्वश्रेष्ठ भाषा क्यों मानी जाती है?

मातृभाषा इसीलिए सर्वश्रेष्ठ भाषा मानी जाती है। पढ़ाने, लिखाने के लिए भी और उस लोक के लायक इंसान बनाने के लिए भी। इसलिए नहीं कि वह उसे घुट्टी में मिली होती है, बल्कि यह उसे उस जगत से जोड़ती है – उस जगत की अब तक की संचित ज्ञान परंपरा से जोड़ती है, जहां उसकी उत्पत्ति हुई है और 99 % मामलों में जहां उसे जीवन गुजारना है। भाषा – मातृभाषा – सिर्फ शिल्प, व्याकरण में नहीं होती वह कहानियों में, लोरियों में, मुहावरों में, पहेलियों में भी होती है। वह व्यक्ति को बनाती है। उसका व्यक्तित्व संवारती है। उसे इंसान जैसा बनाती है।

हिंदी के आरम्भिक बड़े साहित्यकार भारतेन्दु हरिशचंद्र अपने काव्य ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल” कहते समय इसी के महत्त्व को बता रहे होते हैं। ध्यान रहे वे निज भाषा की बात कर रहे हैं – सिर्फ एक भाषा की नहीं।

हर भाषा का अपना उद्गम है, सौंदर्य है, आकर्षण है, उनकी मौलिक अंतर्निहित शक्ति है। बाकी को कमतर समझने की यह आत्ममुग्धता दास भाव भी जगाती है, संकीर्ण और विस्तारवादी भी बनाती है। यह खुद हिंदी को अनेक समृद्ध बोलियों से अलग करता है। उसका तत्समीकरण कर उसे उसके स्वाभाविक गुण से वंचित कर खास तरह के सामाजिक राजनीतिक वर्चस्व का रास्ता तैयार करता है।

अंग्रेजी की जगह हिंदी का वर्चस्व कायम करना, भारत के नागरिकों की निज भाषा – मातृभाषा – का अधिकार उनसे छीनने जैसा है। यही ‘एक संस्कृति, एक अलां एक फलां’ वाला वर्चस्वकारी सोच है जो एक भाषा से प्यार और उसके मान का मतलब बाकी भाषाओं का धिक्कार और तिरस्कार मानता है। किसी एक भाषा को उत्कृष्ट मानकर बाकी भाषाएँ निकृष्ट मानता है। श्रेष्ठता बोध दूसरे को निकृष्ट मानकर रखना एक तरह की हीन ग्रंथि है – मनोरोग है। आरएसएस का भारतीय भाषाओं के प्रति इसी तरह का रुख रहा है। यह उनकी उत्तरी भूभाग – मनुस्मृति में दर्ज आर्यावर्त – को ही भारत मानने की समझदारी है। यह विविधता में एकता के सार और राज्यों के संघ के रूप दोनों को नकारने के लिए हिंदी को सीढ़ी बनाने की कोशिश है – मगर यहीं तक रुकेगी नहीं।

संघ के हिसाब से उनके एक नस्ल और धर्म – आर्य – की भाषा संस्कृत है। वह देव भाषा जिसे पढ़ने लिखने बोलने का हक़ सिर्फ द्विजों, उनमे भी पुरुषों, का है। बाकी सब राक्षसी, असुर भाषाएँ हैं।

तात्कालिक रूप से अमित शाह समिति की सिफारिशें केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी जैसे उच्च तकनीकी संस्थानों के हिन्दीकरण के जरिये भारत की उस विराट आबादी को शिक्षा और इस तरह नौकरियों के अवसर और अधिकार से वंचित करने की हैं। मगर अपने अंतिम निष्कर्ष में यह एक ख़ास तरह के सामाजिक वर्चस्व की कायमी की है। इसलिए हिंदी भाषा भाषियों के लिए भी जरूरी हो जाता है कि वे संसदीय समिति के सुझाव के बाकी इरादों पर आने से पहले इसमें खुद हिंदी और हिन्दुस्तान के लिए निहित खतरों को ठीक ठीक तरह से समझें।

मणिपुर: सरकार ने सांप्रदायिक तनाव का हवाला देते हुए राज्य के इतिहास पर लिखी किताब बैन की

मणिपुर सरकार ने दिवंगत ब्रिगेडियर सुशील कुमार शर्मा की किताब 'द कॉम्प्लेक्सिटी कॉल्ड मणिपुर: रूट्स, परसेप्शन्स एंड रियलिटी' में दर्ज जानकारियों को भ्रामक बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया है. किताब में मणिपुर रियासत के भारत के विलय का इतिहास बताया गया है. The post मणिपुर: सरकार ने सांप्रदायिक तनाव का हवाला देते हुए राज्य के इतिहास पर लिखी किताब बैन की appeared first on The Wire - Hindi.

मणिपुर सरकार ने दिवंगत ब्रिगेडियर सुशील कुमार शर्मा की किताब ‘द कॉम्प्लेक्सिटी कॉल्ड मणिपुर: रूट्स, परसेप्शन्स एंड रियलिटी’ में दर्ज जानकारियों को भ्रामक बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया है. किताब में मणिपुर रियासत के भारत के विलय का इतिहास बताया गया है.

नई दिल्ली: मणिपुर सरकार ने सोमवार को द कॉम्प्लेक्सिटी कॉल्ड मणिपुर: रूट्स, परसेप्शन्स एंड रियलिटी’ नाम की किताब पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि इसमें ‘पूरी तरह से भ्रामक और निंदनीय’ सामग्री है जो सांप्रदायिक वैमनस्य को भड़का सकती है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, दिवंगत ब्रिगेडियर सुशील कुमार शर्मा की यह किताब सेवानिवृत्त सीआरपीएफ अधिकारी की पीएचडी थीसिस पर आधारित थी, जिसमें दावा किया गया था कि मणिपुर की रियासत में भारत के विलय तकनीकी और मौलिक विश्लेषण के समय घाटी क्षेत्र का केवल 700 वर्ग मील शामिल था, जिसका अर्थ था कि पहाड़ी क्षेत्र- जो नगा, कुकी और अन्य जनजातियों द्वारा बसाए गए हैं- इसका हिस्सा नहीं थे.

गृह विभाग की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है, ‘मणिपुर मर्जर एग्रीमेंट’ से जुड़ा इतिहास राज्य के मूल निवासियों के लिए बेहद संवेदनशील और भावनात्मक विषय है. यह जानकारी राज्य में रहने वाले विभिन्न समुदायों के बीच शांति और सद्भाव भंग कर सकती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता प्रभावित हो सकती है.

इसने स्पष्ट किया कि वाइवा बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब में लिखी जानकारी 1950 में ‘भारतीय राज्यों पर श्वेत पत्र’ शीर्षक के तहत राज्य मंत्रालय (अब गृह मंत्रालय) द्वारा प्रकाशित राजपत्र के विपरीत थी. आदेश में कहा गया है कि 15 अक्टूबर, 1949 को विलय के समय समझौते में मणिपुर का क्षेत्रफल 8,620 वर्ग मील था और कुल आबादी 5,12,000 थी.

ज्ञात हो कि कुछ महीनों पहले इस किताब को लेकर विवाद शुरू हुआ था, जब स्थानीय संगठनों ने इस पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही लेखक और उनके शोध गाइड, जिसमें एक सेवानिवृत्त मणिपुर विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर भी शामिल हैं, से माफी मांगने को कहा था.

आदेश में कहा गया है कि काफी ‘भ्रामक, तथ्यात्मक रूप से गलत जानकारी और निंदनीय बयान’ वाली किताब के कारण घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के बीच गलतफहमी और तनाव पैदा होगा, जिससे हिंसा होगी. आदेश में कहा गया है कि पुस्तक को राज्य सरकार को जब्त कर लिया जाना चाहिए.

किताब को लेकर मई महीने से विवाद हो रहा था और सितंबर महीने में राज्य की भाजपा सरकार ने आदेश दिया था कि अब से राज्य के इतिहास, संस्कृति, परंपरा और भूगोल पर सभी किताबों के प्रकाशन से पहले राज्य द्वारा नियुक्त समिति से पूर्व-अनुमोदन लेना अनिवार्य होगा.

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