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एक दलाल का वेतन क्या है

एक दलाल का वेतन क्या है

“ये झारखंड है बाबू, बिना चढ़ावा नहीं होगा काम”…. सरकारी दलालों ने हर काम के रेट कर दिये फिक्स….. अधिकारी भी चुप ? मौन सहमति कहीं मिलीभगत तो नहीं..NMOPS के प्रदेश अध्यक्ष ने चेताया

रांची/ धनबाद न्यू पेंशन योजना से पुरानी पेंशन योजना में बदलने के लिए NMOPS ने अपनी ताकत झोंक दी। राज्य सेवा के कर्मियों ने एकजुटता का प्रदर्शन कर अपनी लड़ाई लड़ी। जिसकी फलस्वरूप मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी। इतनी बड़ी खुशी पर उनके विभाग के पदाधिकारी और सरकारी बाबू ग्रहण लगा रहे हैं। कर्मियों के अपने विभाग के सरकारी दलाल अलग अलग कार्य के अलग अलग रेट फिक्स कर रखा है।

क्या है पूरा मामला

आपको बता दे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सितंबर 2022 से पुरानी पेंशन योजना राज्य कर्मी के लिए बहाल कर दी। वित्त विभाग ने कर्मियों के न्यू पेंशन योजना से पुरानी पेंशन योजना में बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इस प्रक्रिया के तहत शपथ पत्र दाखिल करने, जीपीएफ अकाउंट खोलने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए। यह कार्य वेतन भुगतान करने वाले पदाधिकारी और कार्यालय को किया जाना है। इसके लिए कार्यालय कर्मी को प्रशिक्षण भी दिया गया।

झारखंड में पुरानी पेंशन योजना बहाल क्या हुई सरकारी दलाल में कमाने की होड़ लग गई। पहले तो कर्मियों की अपने से ऑनलाइन करने से रोका गया उसके बाद जब मामला बढ़ा तो कार्यालय बाबू ने तरह तरह के डर दिखाने शुरू कर दिए …

मसलन ऑनलाइन फॉर्म गलत होने पर जवाबदेही कर्मियों की होगी, जीपीएफ ऑफिस में हार्ड कॉपी खुद जमा करना होगा, जीपीएफ कार्यालय खुद मैनेज करना होगा, जान बूझकर बेसिक पेमेंट को अपडेट नहीं किया जाता रहा, शपथ पत्र पर डीडीओ के हस्ताक्षर कराने में जानबूझकर आनाकानी और देरी करना और भी इस तरह के कुछ अनावश्यक तथ्यों का हवाला देकर कर्मियों को अपनी गिरफ्त में सरकारी दलालले रहे हैं।

सब कार्य के लिए रेट चार्ट अलग अलग

NPS to OPS के जो कार्य कार्यालय को करना है अब कर्मी अपने काम छोड़कर कार्यालय के चक्कर लगाने में व्यस्त हैं। जिसकी विभागीय पदाधिकारी को कोई चिंता नहीं। प्राप्त जानकारी के अनुसार कर्मियों को सिर्फ एक बार अपने कार्यालय में उपस्थित होना पड़ता है जिसमें हस्ताक्षर और एफिडेफिट कार्य शामिल है। परंतु कभी झार नेट का हवाला तो कभी कार्यालय की व्यवस्था दिखाकर जानबूझकर कर्मचारियों को चक्कर लगाने पर मजबूर किया जाता है ताकि कर्मचारी सुविधा शुल्क देने को तैयार हो जाए।

सबसे मजेदार बात यह है कि कार्यालय के सरकारी दलालों ने अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग रेट चार्ट तय कर रखे हैं।

शपथ पत्र और नॉमिनेशन 500.00

शपथ पत्र एफिडेफिट 200.00 से 500.00

ऑनलाइन अपलोडिंग 500.00 (डीडीओ हस्ताक्षर)

जीपीएफ ऑफिस खर्चा 500.00 से 1000.00

कर्मी अपने इच्छानुसार अलग अलग कार्य करा सकते हैं या फिर सरकारी दलालों ने एक पैकेज भी बना रखा है जिसकी दर 1000 से 2000 के बीच रखी गई है। इस पैकेज के तहत दलाल एक मुश्त पैसे लेकर जीपीएफ no आवंटित कराने की जिम्मेवारी लेते हैं। और उन कर्मी को क्रैक सेवा के तहत जीपीएफ no निर्गत कराए जाने की भी सुविधा उपलब्ध है।

जीपीएफ कार्यालय में भी चल रहा पैसे का खेल

2004 के बाद नई पेंशन योजना के तहत बहाल कर्मियों के लिए जीपीएफ ऑफिस कोई महत्व नहीं रखता था। परंतु पुरानी पेंशन योजना बहाल होने से जीपीएफ ऑफिस में इस समय उत्सव जैसा माहौल है। सभी विभागों के लिए आवंटित अलग-अलग बाबू की अपनी-अपनी चांदी चल रही है। सुविधा शुल्क देकर तुरंत जीपीएफ नंबर अलॉट करने का काम बदस्तूर जारी है।

संबंधित विभागीय पदाधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। विभागीय पदाधिकारी के नाक के नीचे इस तरह के अनैतिक कार्य की अनदेखी करना समझ से परे है। क्योंकि किसी भी विभाग से ऑनलाइन आवेदन अपलोड करने के बाद उसमें टाइम और तिथि दोनों दर्ज हो जाती है। परंतु फॉर्म अपलोड करने के क्रम के हिसाब से जीपीएफ अकाउंट अलॉट नही किया जा रहा। जो काम पहले पाओ की तर्ज पर होना चाहिए, वो काम पैसे दो अकाउंट no लो की तर्ज पर किया जा रहा है।

संबंधित विभागीय पदाधिकारी भले इस पैसे के खेल में अनभिज्ञता जाहिर करते है, परंतु उनके कार्यालय और जीपीएफ कार्यालय में पैसे का खेल बदस्तूर जारी है। साथ ही जीपीएफ no जारी करने में जान बूझकर देरी पर सख्त निगरानी की आवश्यकता है। यदि इसके बाबजूद पदाधिकारी की निगरानी नही हो रही तो इस पूरी मिलीभगत से इंकार भी नही किया जा सकता।

NMOPS के पदाधिकारी रखे हैं पैनी नजर – प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत कुमार सिंह

NMOPS के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत कुमार सिंह का कहना है की पैसे की लेनदेन की शिकायत कई जिलों के कार्यालय से आ रही है, साथ ही पैसे के लेन देन के लिए मोटिवेट किया जा रहा है। जिस पर हमारी टीम की पैनी नजर है। कई कार्यालय के कर्मी और पदाधिकारी की शिकायत, कॉल रिकॉर्डिंग संगठन तक पहुंच चुकी है। जो भी कर्मी और पदाधिकारी भयादोहन कर भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाए जाएंगे उनकी शिकायत सीधे तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय, वित्त विभाग और भविष्य निधि निदेशालय में की जायेगी।

गोड्डा जिला के कोषागार पदाधिकारी सह जिला भविष्य निधि पदाधिकारी उमेश चंद्र दास जो स्वयं NPS से OPS के रास्ते पर हैं, का कहना है मैने कार्यालय स्तर से जीपीएफ अकाउंट no देने में देरी नहीं करने,और पैसे के लेन देन नहीं करने की सख्त हिदायत दे रखी है। प्रतिदिन मॉनिटरिंग मेरे द्वारा किया जाता है। कुछ फॉर्म में त्रुटियों के कारण विलंब हो रही हैं।

वहीं गोड्डा के संयोजक डा सुमन कुमार के नेतृत्व में NMOPS की टीम जायजा एक दलाल का वेतन क्या है लेने जिला भविष्य निधि कार्यालय पहुंची, जिले में कार्यरत कर्मियों के जीपीएफ अकाउंट खोलने संबंधी बातों का जायजा लिया। उन्होंने बताया की हमारी टीम जल्द से जल्द जिले भर के कर्मियों का अकाउंट no दिलाने के लिए प्रयासरत है और किसी भी भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा नही दिया जाएगा।

गुमनाम प्रचार

निगम चुनाव के बीच दिल्ली की सड़कों पर एक अलग तरह की मुहिम दिख रही है।

गुमनाम प्रचार

एक ऐसा वर्ग जो गुमनाम रहकर पोस्टर चिपका रहा है। हस्तलिखित इन पोस्टरों में राजनीतिक दलों के प्रति निराशा के संकेत है। कहीं नोटा को वोट देने की अपील है तो कहीं किसी राजनीतिक दफ्तर जाने वाले पथ को ‘भ्रष्ट-पथ’ तक लिखा गया है। नई दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज रोड और पंत मार्ग को जोड़ने वाले गोल चक्कर पर लगा ‘भ्रष्ट-पथ’ वाला पोस्टर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

इससे सटे एक राष्ट्रीय दल का प्रदेश कार्यालय भी है। लिहाजा ऐसा पोस्टर लगाने वाला कौन हो सकता है? इसकी खोज खबर ली जा रही थी। कई नेता तो बड़े गुस्से में थे ! इसे टिकट काटने वालों की करतूत बताया जा रहा था। अलबत्ता नेताजी तक शांत हुए जब उन्हें एक खबरनवीस ने बताया कि ऐसे गुमनाम पोस्टर कई जगह लगे हैं। बात सिर्फ आपकी या आपके पार्टी की नहीं है।

बिचौलियों का दांव

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नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों में दलाली पर रोक लगाने के लिए किए गए सभी उपाय दलालों ने नाकाम कर दिए हैं। इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार दलालों से ज्यादा अन्य प्राधिकरणों से यहां आने वाले अधिकारी हैं। दरअसल, यहां काम कराने आने वाले फरियादियों को चक्कर कटा-कटा कर कर्मचारी थका देते हैं, ऐसे में उनके पास दलालों के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। बेदिल ने किसी से सुना कि यह सब पहले से तय होता है।

यह कड़ी इतनी मजबूत है कि अधिकारियों और कर्मचारियों के नजदीक रहने वाले दलाल पहली बार में सौदे की रकम तय होकर केवल उतने ही दस्तावेज मांगते हैं, जिनके बगैर काम होना संभव नहीं होता है। अन्य कागजों की एवज में सीटवार शुल्क निर्धारित कर काम करा देते हैं। अन्य प्राधिकरणों से स्थानांतरित होकर आए अधिकारियों को जरूरी और गैर जरूरी कागजातों के बारे में ज्यादा पता नहीं है। दलाल विभागीय कर्मचारियों से उन फाइलों को प्राधिकरण कार्यालय के बाहर स्थित अपने आफिसों में मंगाकर पहले की भांति सब कुछ करा पा रहे हैं।

कर्मचारियों की आह

दिल्ली में हो रहे नगर निगम चुनाव हो रहे हैं लेकिन कर्मचारी खुश नहीं हैं। कर्मचारी वेतन की मांग कर रहे हैं और जिनकी चुनाव ड्यूटी लगी है वे सुविधाओं के लिए गुहार लगा रहे हैं। ऐसे में कुछ का तो यह भी कहना है कि यह चुनाव जल्दीबाजी में कराने के क्या मायने हैं? जब से तीनों निगम का एकीकरण हुआ है तब से आपाधापी शुरू है। तीनों निगमों में दक्षिण के कर्मचारियों को वेतन और अन्य सुविधाएं समय से मिलता रहा है तो पूर्वी और उत्तरी को इन चीजों से महरूम होना पड़ रहा है ऐसे में चुनाव की घोषणा के बाद इस मुद्दे पर कुछ कर्मचारियों ने गोलबंदी शुरू कर दी है और एक दलाल का वेतन क्या है इसका परिणाम तो अब चुनाव में ही देखने को मिलेगा।

ये कैसी मजबूरी

पिछले कुछ दिनों से आए दिन जेल के अंदर बंद एक मंत्री जी के आवभगत से संबंधित सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर चर्चा में हैं। इसके बाद से जहां एक ओर मंत्री विपक्ष के निशाने पर हैं। वहीं, पार्टी कार्यालय में भी इसको लेकर चर्चा जोरों पर है। पार्टी इसे विपक्ष की सोची समझी साजिश मान रही है। बीमारी का सहारा ले रही है। पर यह बात आम कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतर रही है।

कार्यकर्ता दबे जुबान ही सही पर मान रहे हैं कि इसको लेकर कहीं न कहीं पार्टी की छवि धूमिल हो रही है। इस दिशा में पार्टी के आलाकमान को सही और ठोस निर्णय लेना चाहिए। पर कोई खुल कर विरोध नहीं कर पा रहा है। चर्चा तो यह भी हो रही है कि यदि ऐसे ही वीडियो सामने आते रहे तो आने वाले दिनों में कार्यकर्ताओं को आम जनता को जवाब देना भारी पड़ेगा। पार्टी कार्यकर्ताओं को समझ नहीं आ रहा है कि यह कैसी मजबूरी है जो पार्टी आला कमान के लिए गले की फांस बन गई।
-बेदिल

नेता-अमीर-मालिक-दलाल सबके भीतर एक भिखारी रहता है !


THOUGHTS_1 H x

लाेनावला रेलवे स्टेशन पर बाहर टिकट घर का परिसर.. बात कुछ पुरानी है. मगर जरूरी है.. बाहर बारिश हाे रही थी.. यात्रियाें के अलावा भी कई लाेग थे.. उनमें से चारपांच बड़े भिखारी थे.. कुछ बच्चे भी थे. तभी एक बुड्ढी के बाल वह जाे श्नकर से बनाया जाता है. वह बेचने वाला आया. उसका सारा माल करीब-करीब वैसा ही था. समय था करीब साढ़े छह.. सात बजे शाम का अंधेरा हाे रहा था. रेलवे स्टेशन के उस टिकट घर में ट्यूबलाइट्स जले हाेने से अच्छी राेशनी थी.. वे भिखारी शायद दिन भर भीख मांगते व शाम काे वहां एकत्र हाेते.. ऐसा बाताें से लग रहा था.. दिन भर कहां-कहां भीख मांगी.. क्या -्नया मिला.. लाेगाें का व्यवहार कैसा रहा? यह सब वे जाे आपस में बता रहे थे, उससे लग रहा था, कि यदि इंसान की असलियत जानना हाे ताे भिखारियाें से उनके व्यवहार के बारे में जानना चाहिए.

तभी उस ‘बुड्ढी के बाल’ वाले ने माल निकाल निकालकर भिखारियाें व बच्चाें काे बांटना शुरू किया.. जिन्हें वह 10-10 रुपए में बेचता था, उन्हें मुफ्त में लुटा रहा था.. शायद 27 ऐसे बुड्ढी के बाल थे.. यानी बेचता ताे 270 रुपए बनते. उसने निसंकाेच लुटा दिया. बाेला - ‘ये बच्चे खा लें ताे समझाे मेरी कीमत मिल गई.’ उसकी इस ‘अमीरी’ काे देखकर आश्चर्य हुआ, पूछा - ‘कल कैसे धंधा कराेगे..क्या खाओगे? उसने कहा- ‘इतनी भी गरीबी नहीं है. रेलवे स्टेशन का यह शेड ही घर है किराया ताे देना नहीं है, दाे व्नत का खाना आराम से मिल जाता है. यही ताे मेरी फैमिली है, ये ही लाेग ही उसकी प्रापर्टी भी थे. यह समझना कठिन नहीं था.’ सचमुच, आप संकट काल में आजमा सकते हैं, काेई अमीर.. महलाें-ल्नजरी काराें वाला साथ नहीं देता.. ए्नसीडेंट स सड़क पर पड़े हाें, कहीं जेब कट गई हाे.. जेब में पैसे न हाें.. नया शहर हाे.. आपका साथ गरीब देंगे.. और यदि किसी अमीर ने दिया ताे समझ लें, वह पैसे काे नहीं इंसान काे मूल्य देता है. ऐसे कई उदाहरण हैं.

सिर्फ एक यहां पर चर्चा में! एक भिखारिन एक ऐसे ही बड़े शहर के रेलवे स्टेशन पर मर गई.. उसकी लाश उठाने जब कार्रवाई के तहत् पुलिस पहुंची ताे उसकी पाेटली में उसे कुछ रुपए मिले, साथ में एक मैसेज भी, उसमें लिखा था कि ‘जब काेई प्रसूति गृह बने ताे उसमें इस पैसे का इस्तेमाल किया जाए’ कितनी ‘अमीर’ भिखारिन थी वह. लेकिन सभी ऐसे नहीं हाेते. आंध्रप्रदेश के तिरुमला स्थित बालाजी मंदिर के सामने एक पुराने भिखारी श्रीनिवासन की मृत्यु हाे गई. मजा यह कि उसके घर का काेई वारिस न हाेने से पड़ाेसियाें की नजर जमी हुई थी, उस पर कब्जा करने. श्रीनिवासन से या उसकी लाश के अंतिम संस्कार आदि से काेई वास्ता न था, सूचना पाकर पुलिस पहुंची.. ताे हैरत में आ गई.. उसके पास नाेटाें से भरे दाे ब्नसे मिले, जिनमें 6,15050 रुपए थे. यानी भिखारी ताे लखपति था. लालची पड़ाेसी ताकते रह गए. वैसे ऐसा वह अकेला भिखारी नहीं है. ऐसे बहुत लखपति भिखारी आपकाे नेट पर मिल जाएंगे.

ये ताे प्रत्यक्ष भीख मांगते हैं, इसी पृथ्वी पर.. इसी मुल्क में वे अमीर जाे देश-समाज से छीन-छीनकर शाेषण कर.. ठगी-जालसाजी से कानून ताेड़-झूठ बाेलकर कराेड़पति अरबपति-खरबपति बन गए हैं, वे सब भी ताे भिखारी हैं. ये अंबानी-अडानीक्या हैं? भिखारी ही ताे हैं. अंतर यह है कि यह ‘भिखारी मानसिकता’ वाले भिखारी हैं. इतना पैसा प्रापर्टी जमा है कि यह ‘कचरे’ में बदल गई है. खुद पता नहीं.. बेहिसाबी. हमारे नेताओं काे देखाे.. दल-पार्टी के नाम पर गैंग-गिराेह बना रखे हैं.. सब जनता से भीख मांगते हैं. और खुद काे देव ‘समझते हैं. उनकी आत्मा ही बता देगी कि उनकी काैड़ी भर कीमत नहीं है. पता नहीं इस देश में राजनीति काे कब महत्व देना बंद किया जाएगा, सरकार और बाजार दाेनाें भिखारियाें से पटे पड़े हैं. सत्ता पक्ष हाे.. विपक्ष हाे काेई फर्क नहीं है. काेराेना काे लेकर सियासी गेम खेल रहे हैं. एक पुस्तक बहुत पहले देखी थी. शीर्षक याद नहीं है, मगर उसके अंत में लिखा था.

‘मनुष्य के पतन की काेई सीमा नहीं है.’ अभी जाे ताउ-ते आया.. ताे उसने भी ऐसे भिखारी मानसिकता वालाें के नकाब उतार दिए.. नकाबक्या उतारे पूरा का पूरा वस्त्रहरण कर दिया. द्राैपदी के चीर ताे दुःशासन ने खींचे थे.. ये ताे खुद अपना ही चीरहरण करने वाले लाेग हैं. गैल GAIL गैस अथाॅरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की कार्यशैली देखिए. ’ONGC’ या ऑइल एंड नैचुरल गैस कार्पाेरेशन लिमिटेड की चेतावनी के बाद भी कुछ ऐसे कांट्रै्नटर थे. जिन्हाेंने ‘एलर्ट’ जाे 14 मई काे ही जारी हाे गया था, की पर्वाह न करते हुए अपने कर्मियाें-मजदूराें काे माैत के मुंह में भेज दिया. मुंबई-हाई में बार्ज झ-305 व 553 के समुद्र में फंसने से जाे बचकर लाैटे, उनमें से सागर, विष्णु व सुभाष ताेमर जैसे लाेगाें ने टी.वी. मीडिया के सामने जाे बयान दिए, वे शर्मनाक ही नहीं, बल्कि खतरनाक भी हैं, इन्हाेंने बताया कि कांट्रै्नटर ने एलर्ट की उपेक्षा कर उन्हें समुद्र में भेज दिया.

जाे कैप्टन था, उसने कहा कि ‘तूफान बहुत दूर से जा रहा है, हमें खतरा नहीं है,’ मगर जब तूफान आ गया निकट ताे फिर मदद मांगी तब गेल प्रशासन ने कहा - ‘चेतावनी देने के बाद भी तुम लाेग गए ताे हम कैसे मदद कर सकते हैं.’ ONGC से गुहार की.

आखिर नेवी के जवानाें ने आकर जान पर खेलकर उन्हें बचाया. 261 से ज्यादा लाेगाें की जान खतरे में थी, उन्हाेंने उम्मीद भी छाेड़ दी थी. पुणे-पिंपरी चिंचवड़ मनपाओं में भी आप पाएंगे कि हजाराें कर्मी-मजदूर कांट्रै्नट पर हैं, कांट्रै्नटर काे सिर्फ ‘काम’ चाहिए. उसे आदमी से काेई मतलब नहीं, उनके वेतन-मानधन व अन्य देय रकम का बड़ा हिस्सा मिलता ही नहीं है. कई-कई महीने वेतन नहीं दिया जाता. आश्चर्य यह कि डाॅ्नटर-नर्सेस कांट्रै्नट पर हैं, उनके वेतन भत्ताें के नाम पर परेशान किया जाता है.

सच यह है कि इस मुल्क में प्राइवेट से्नटर का बड़ा हिस्सा अपने कर्मियाें-लेबर्स काे ‘बंधुआ’ मजदूर समझता है. राहुल बजाज का परिवार भी इस मामले उदार है.

ऐसे उद्याेगपति व मालिक वर्ग का हिस्सा है, मगर अधिकांश ऐसे लाेगाें की उदारता भी शाेषण के सिद्धांत पर ही जीता है. नहीं ताे इस देश में इतना धन, पैसा, दाैलत है कि काेई भूख, बीमारी या काेराेना से मर जाए? मुश्किल है. इंसानियत के मामले में ताे यही सच है. ‘पर उपदेश कुशल बहु तेरे.’ दूसराें काे उपदेश देना सबसे आसान है. श्रीनिवासन ताे भिखारी की तरह जीया व मरा, लेकिन यह सच छाेड़ गया कि इस देश में सरकार हाे, बाजार हाे, नेता हाे, अमीर हाे, मालिक हाे दलाल हाे, ब्यूराेक्रेट्स हाें, कांट्रे्नटर्स हाें, सबके भीतर एक श्रीनिवासन रहता है.

बिहार शिक्षक बहाली 2019,नियोजित शिक्षकों के समान काम के बदले समान वेतन ने किया लाखों अभ्यर्थियों को बेरोजगार।

Bihar Teacher Bahali 2019 :- बिहार शिक्षक बहाली 2019,नियोजित शिक्षकों के समान काम के बदले समान वेतन ने किया लाखों अभ्यर्थियों को बेरोजगार।

बिहार के 3 लाख 75 हजार नियोजीत शिक्षकों के लिए खुला पत्र जारी किया है बिहार टीईटी पास सीटीईटी पास अभ्यर्थियों ने अब नियोजित शिक्षकों के प्रति एक खुला पत्र जारी किया है और उनसे जवाब माँगा है।

नियोजित शिक्षक जब यह कहते हैं कि बिहार के पास बेरोजगार युवा शिक्षक नियोजन का विरोध करें तो वह किस आधार पर कहते हैं. जब एक दलाल का वेतन क्या है वे स्वयं नियोजित होने से नहीं चूके तो बिहार टीईटी व सीटेट पास अभ्यर्थियों को मना क्यों कर रहे हैं. और उन्होंने बिहार में शिक्षकों की बहाली निकलवाने के लिये क्या प्रयास किया. कुछ भी नहीं,बल्कि समान काम समान वेतन का मामला जब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था तो वो लोग संपर्क संपर्क करने पर कहा करते थे कि बहाली भूल जाइए क्योंकि अभी 3 से 4 साल तक बहाली नहीं होगी। जब अब बिहार में शिक्षकों की बहाली की उम्मीद जगी है,तो इनका विरोध करने की सलाह देकर हमें हमेशा के लिए बेरोजगारी की श्रेणी में ही रखना चाहते हैं.

जब बाली का विरोध करते हैं या करने को आते हैं तो भूल जाते हैं उन अभ्यर्थियों को जिन्होंने 2012 से उनके साथ संघर्ष किया पर आज भी बेरोजगार है। उनकी प्रमाण पत्र की वैधता समाप्त होने को है ऐसे में कोई इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है।

बिहार में नियोजित शिक्षकों को उचित वेतन ना मिलने का सबसे एक दलाल का वेतन क्या है बड़ा कारण है फर्जी शिक्षकों की बहाली एवं उनका काफी संख्या में होना भी एक प्रमुख कारण है। रोज समाचार पत्रों में कहीं ना कहीं फर्जी शिक्षकों को लेकर खबर प्रकाशित होती रहती है पर उन्हें बाहर करने में किसी संघ या नेता ने कोई प्रयास नहीं किया,बल्कि उन्हें सिस्टम में बनाए रखने के लिए दलाल का काम कर रहे हैं। क्या इन फर्जी शिक्षकों के कारण योग्य शिक्षकों की योग्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता है।

अंत में यही कहना चाहते हैं कि सभी मायने में आप बिहार के हितेषी है तो बिहार टीईटी व एक दलाल का वेतन क्या है सीटीईटी पास अभ्यर्थियों को बहाली के बारे में आप सोचे ताकि टीईटी पास अभ्यर्थियों की बहाली शीघ्र हो सके और फर्जी शिक्षकों को बाहर करवा कर अपने सम्मान पर होनेवाले आघात को बचाए। रिंकु मिश्रा सदस्य बिहार की शिक्षा बिहार टीईटी सीटीईटी शिक्षक बहाली मोर्चा।

नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन मामले पर 10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और बिहार के 3 लाख 75 हजार नियोजित शिक्षकों को एक बड़ा झटका दिया। चुकी पटना हाईकोर्ट ने फैसला नियोजित शिक्षकों को समान काम समान वेतन देने का सुनाया था लेकिन बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी और सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2019 को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था लेकिन जब 10 मई 2019 को फैसला आया तो सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसला को ही पलट दिया ऐसे में बिहार के 3 लाख 75 हजार नियोजित शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया । अब नियोजित शिक्षक आंदोलन की तैयारी कर रहे है।

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