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विदेशी मुद्रा बुनियादी बातों और समाचार

विदेशी मुद्रा बुनियादी बातों और समाचार
बनारस बीड्स लिमिटेड, वाराणसी

पिछले एक दशक में कांच की मोती उद्योग को ड्रैगन लील गया, चालू वित्तीय वर्ष में बनारस बीड्स लिमिटेड अच्छा कारोबार करेगी: सीएमडी

कांच की मोती

बनारस: वैश्विक महामारी कोरोना कारण एक तरफ पूरी दुनिया में लॉकडाउन के चलते उद्योग धंधे प्रभावित हुए जिसमे कई व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद हो गए और कई उद्योगों में हजारों कर्मचारियों की छंटनी भी हुई है, लेकिन वही बनारस बीड्स लिमिटेड ने रोजगार के अवसर प्रदान किए। कंपनी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अशोक कुमार गुप्ता ने बताया कि हमारी मजबूत बुनियादी बातों और कंपनी में विदेशी खरीदारों के भरोसे को दर्शाता है।रिश्ते और विश्वास किसी भी कंपनी के लिए सबसे कीमती संपत्ति है और शेयरधारकों काविश्वास पहले की तुलना में बहुत मजबूत होता है, जब आपकी कंपनी बढ़ेगी तो कंपनी से जुड़े सभी लोग बढ़ेंगे।

कांच की मोतियों के सबसे बड़े उत्पादक व निर्यातक बनारस बीड्स लिमिटेड द्वारा वाराणसी में आयोजित वार्षिक आम बैठक में कंपनी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अशोक कुमार गुप्ता ने कहा कि वैश्विक महामारी कोविड -19 के दूसरे वर्ष में भी विभिन्न परेशानियों से संघर्ष करते हुए बनारस बीड्स लिमिटेड ने मजबूती से अपनी स्थिरता बनाते हुए यह साबित कर दिया कि कंपनी किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है, यह सब कंपनी के मजबूत इरादों और सकारात्मक सोच और दृढ़ संकल्प से संभव हो सका और हम वैश्विक रिश्ते और विश्वास के बल पर आगे बढ़ते हुए चीन से कारोबारी प्रतिस्पर्द्धा कर रहे है और इस संघर्ष में सरकार को उद्यमियों का साथ देना चाहिए।बताया कि वर्ष 2019-20 में कंपनी की सकल आय 23.56 करोड़ थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 19.42 करोड़ रह गई, जिसका मुख्य कारण वर्ष 2020-21 में लॉकडाउन की वजह से कंपनी में उत्पादन 8-9 महीने रहा, पिछले दो वर्षो में कोई विदेशी मार्केटिंग टूर नहीं हुआ कोई नया ग्राहक नहीं बढ़ा, किसी भी व्यापार मेले में भाग नहीं ले पाए जिसके चलते भी कारोबार 19 प्रतिशत प्रभावित रहा, तो वही इस तरह के अतिरिक्त व्यय नहीं होने से कंपनी का शुद्ध लाभ भी बढ़ गया। वही उन्होंने कहा कि बिना किसी सरकारी प्रोत्साहन के जी आई पंजीकृत हस्त निर्मित कांच के मोती 10.67करोड़ रुपए, लकड़ी के मोती 60.76 लाख रुपए, सॉफ्ट स्टोन के आर्टिस्टिक मोती 12.28लाख रुपए और 4.71 लाख रुपए के टेरीकोटा के मोतियों का निर्यात किया।

बनारस बीड्स लिमिटेड, वाराणसी

उन्होंने कहा कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव से कंपनी के आर्डर बुक में 30प्रतिशत की वृद्धि का अवसर मिला है क्योंकि चीन से अमेरिका में आयात करने पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क में वृद्धि होने से भारतीय उत्पादों का निर्यात अमेरिका में बढ़ना शुरू हो गया है। इसका असर कंपनी के चालू वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट में दिखाई पडेगा। उन्होंने कहा कि हम बेहद आशावादी हैं और विश्वास करने के कई कारण ही कंपनी सफलता के मार्ग प्रशस्त हुए है, और यह आगे भी जारी रहेगा चाहे कोई प्रतिकूल स्थिति हो तो भी कंपनी का सालाना बेहतर प्रदर्शन होता रहेगा और कंपनी विकास केमार्ग पर आगे बढ़ती रहेगी।

अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ने बताया कि भारत कांच की मोतियों का पिछले दशक तक नेट निर्यात कथा एवं भारत वर्ष से जितना निर्यात होता था उससे ज्यादा कांच की मोतियों की खपत”इमिटेशन ज्वैलरी, जपने की माला, मंगलसूत्र ” इत्यादि में होता था, निर्यात से 100 गुना माल घरेलू बाजार में बिक जाता था, दुर्भाग्य से चीन के ड्रैगन की नजर भारत के इस उद्योग पर पड़ी और कांच के मोतियों की चमक फीकी पड़ गई, प्रतिस्पर्धा में भारत में ही स्वदेशी कांच की मोतियों का कारोबार शून्य हो गया क्योंकी भारत में मोतियों के कारोबार में चीन का अधिपत्य हो गया। पिछले तीन वर्षो के आकंड़ो के अनुसार भारत में चीन से प्रतिवर्ष औसतन 800 करोड़ रुपए का औसत 30 हजार टन कांच की मोतियों का विदेशी मुद्रा में आयात हुआ जो कुल आयात का लगभग 85 प्रतिशत है और इस पर 800 करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा प्रतिवर्ष खर्च होती है। उन्होंने कहा कि फिर भी समझ नहीं आता कि भारत सरकार अपना राजस्व क्यों नहीं बढ़ाना चाहती। वही इन्ही हालातो के कारण कम से कम 20 पंजीकृत व्यापारियों और उद्योगों ने कार्य बंद कर विदेशी मुद्रा बुनियादी बातों और समाचार दिया और 10 हजार से ज्यादा कारीगर बेकार हो गए।

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बनारस बीड्स लिमिटेड ​में कार्य करते कर्मचारी

अशोक कुमार गुप्ता ने कहा कि पिछले कई वर्षो से यहां के उद्यमी और उनके संगठनो द्वारा पिछले 5 वर्षो से सरकार से गुहार लगाती आ रही है कि वर्तमान में भारत में कांच के मोती पर आयात शुल्क 20 प्रतिशत है जिसे बढाकर 45 प्रतिशत कर दिया जाए तो लगभग 200.00 करोड़ रुपए की अतिरिक्त सीमा शुल्क मिलेगा, उन्होंने कहा किहमारा सुझाव है कि केंद्र और राज्य सरकारें जी आई उत्पादों को निर्यात के लिए प्रोत्साहित करे और स्थानीय उद्योगों को बचाते हुए अपने राजस्व में इजाफा करे जिससे मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो सकें। उन्होंने आगे कहा कि यदि इस पर आयात शुल्क में वृद्धि हो या एंटी डंपिंग शुल्क लगा दिया जाए तो भारत सरकार राजस्व बढ़ जाएगा और उत्तर प्रदेश में कम से कम दस हजार लोगो को पुनः रोजगारमिल सकता है जो कि अब बेरोजगार हो गए है एवं 800 करोड़ की विदेशी मुद्रा भी बचेगी।

नए सामाजिक अनुबंध की जरूरत

पचहत्तर साल पहले भारत को भूख और भुखमरी से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। उस काल-खंड में विदेशी मुद्रा पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। हमारे सामने तब एक आजाद मुल्क बने रहने और अति-गरीबी से.

नए सामाजिक अनुबंध की जरूरत

पचहत्तर साल पहले भारत को भूख और भुखमरी से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। उस काल-खंड में विदेशी मुद्रा पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। हमारे सामने तब एक आजाद मुल्क बने रहने और अति-गरीबी से मुक्ति के लिए अपने आर्थिक विकास को गति देने की भी चुनौती थी। बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, घरेलू व निर्यात संबंधी प्रतिस्पद्र्धी बुनियादी ढांचे और कृषि व विनिर्माण क्षमताओं के आधुनिकीकरण को लेकर भी हम प्रयासरत थे। इसी तरह, सामंती व्यवस्था से ऊपर उठते हुए हमें एक ऐसे युग में प्रवेश करना था, जहां समानता और सामाजिक गतिशीलता को अधिक प्रोत्साहन मिले। इस लिहाज से देखें, तो इन सभी अहम कसौटियों पर हमने अच्छी-खासी तरक्की की है।
मगर क्या हमने अवसर भी गंवाए, गलतियां भी कीं? वास्तव में, हर सफलता कमियों और गंवाए गए अवसरों के साथ ही रेखांकित की जाती है। जैसे, यह समझ से परे है कि कैसे हमने अत्यधिक नियंत्रण वाले केंद्रीकृत योजनाबद्ध मॉडल को लगातार बनाए रखा। यह भी बहुत साफ नहीं कि साल 1991 के आर्थिक सुधार उस समय की मजबूरी थे या हमारी चयन संबंधी आजादी का प्रतिफल? विकल्प तभी सार्थक होते हैं, यदि चुनने के रास्ते कई हों। साल 1991 में हमारे पास चयन के विकल्प सीमित थे।

इस परिस्थिति में यदि हम यहां से अगले 25 वर्षों के लिए अपनी यात्रा शुरू करते हैं, तो 100वें साल पर भारत के लिए हमारी खोज क्या होगी? उन लक्ष्यों की झलक स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन में हमें मिलती है, जिनमें सामाजिक सुधार और पुनर्रचना भी शामिल हैं। उनके ‘पांच प्रण’ के हर प्रण में दूरगामी बदलाव नजर आते हैं और इनमें सबसे अहम है भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प। लिहाजा, हमें खुद से यह पूछना चाहिए कि एक विकसित देश हम कैसे बनेंगे, और इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें किस तरह के बदलावों की जरूरत है?
व्यापक अर्थों में इसका मतलब है, सामाजिक अनुबंध की पुनर्रचना। सन् 1762 में जीन-जैक्स रूसो द्वारा गढे़ गए मूल सामाजिक अनुबंध में शासन संरचना और उसके प्रति दायित्व को लेकर नागरिकों में सहमति थी। बेशक समय की कसौटी पर यह अनुबंध काफी हद तक खरा उतरा है, लेकिन अगले 25 वर्षों के बदलाव की प्रकृति और उसकी रफ्तार पुराने अनुभवों के मुकाबले अलग हो सकती है। जाहिर है, नए सामाजिक अनुबंध से तात्पर्य यह है कि न केवल नागरिक अधिकारों को लेकर, बल्कि उसके कर्तव्यों को लेकर भी नए प्रावधान तय करने की जरूरत है। सवाल है कि एक उच्च आय वाले विकसित देश में हम कैसे शुमार होंगे?
एक, हमें आर्थिक विकास की उन दरों को पाना होगा, जो हमारी प्रति व्यक्ति आय को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की परिभाषा के मुताबिक तय 20 हजार डॉलर नॉमिनल जीडीपी या विश्व बैंक के मापदंड के अनुरूप 12,696 डॉलर के करीब ले आए। अभी हम एक मध्य-आय वाले देश हैं। सिंगापुर सरकार के वरिष्ठ मंत्री टी शणमुगरत्नम ने प्रथम अरुण जेटली व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए कहा कि लोगों की औसत आय बढ़ाने और अधिक रोजगार पैदा करने के लिए भारत को अगले 25 वर्षों तक आठ से दस फीसदी की दर से विकास करना होगा। यह अनुमान लगाया गया है कि इसके लिए आईएमएफ स्तर के हिसाब से 9.36 प्रतिशत और विश्व बैंक के स्तर के लिहाज से 7.39 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर को हासिल करना अनिवार्य होगा।

साफ है, व्यापार विकास की मुख्य धुरी होगा। हमें एक ऐसी व्यापार नीति तंत्र की जरूरत है, जो वास्तविक विनिमय दरों से आगे जाता हो, बल्कि अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पद्र्धी बनाने के लिए व्यापार, रसद, परिवहन और नियामक ढांचे में उल्लेखनीय सुधार कर सके। आयात शुल्कों की संकीर्ण व्याख्या आत्मनिर्भर भारत के दर्शन से उलट है। जब तक प्रतिस्पद्र्धी कीमतों पर आयात उपलब्ध न होंगे, निर्यात क्षमता प्रतिस्पद्र्धी नहीं बन सकेगी। इसके अलावा, चीन के उदय सहित बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं व बदलावों को देखते हुए हमारी व्यापार रणनीति को एक अलग पटकथा की जरूरत है।
दो, मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) पर ध्यान देने की जरूरत है। हमें जीवन प्रत्याशा के साथ-साथ ग्रामीण आबादी तक बिजली की पहुंच, इंटरनेट की उपलब्धता, जीवन व संपत्ति की सुरक्षा और आय की असमानता को पाटने जैसे अहम मापदंडों पर सुधार करने की आवश्यकता है। हमें अपने एचडीआई स्कोर को 0.645 के मौजूदा मध्यम स्तर से 0.8 के करीब ले जाने की जरूरत है, ताकि हम उच्च स्तर पर पहुंच सकें। इसके लिए हमें मान्यता प्राप्त निर्यात निकायों की सिफारिशों के अलावा, शिक्षा व स्वास्थ्य देखभाल पर नए सिरे से जोर देने के लिए 2020 की नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में की गई प्रतिबद्धताओं के पालन की आवश्यकता है।

तीन, जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई व जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने का अर्थ है मौलिक तरीकों से जीवन का संचालन। इसका मतलब है, कृषि पद्धतियों, उर्वरकों व कीटनाशकों के इस्तेमाल और यातायात के तरीके में बडे़ पैमाने पर बदलाव। जाहिर है, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, सौर पैनल, बैटरी भंडारण और परिवहन से जुड़े नियमों-नियामकों में व्यापक परिवर्तन करना होगा। इनमें निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने से जोखिम कम होगा, बहुपक्षीय संस्थानों से संसाधन जुटाए जा सकेंगे और लघु व मध्यम उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। हमें अब भी सामाजिक क्षेत्र और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश करना होगा। मगर अनुकूलन और शमन के इस संयुक्त प्रयास के लिए तमाम हितधारकों की विदेशी मुद्रा बुनियादी बातों और समाचार सहभागिता व सक्रिय योगदान की जरूरत होगी। इसमें केंद्र, राज्य सरकारों के अलावा सामाजिक क्षेत्र भी शामिल हैं।
एक विकसित देश बनना हमारा नया सामाजिक अनुबंध है, ताकि गुलामी की औपनिवेशिक विरासत के संकेतकों को मिटाकर उनकी जगह हम गौरव और अपेक्षाओं से युक्त कर्तव्यबोध को स्थापित कर सकें।अल्बर्ट आइंस्टीन ने बिल्कुल दुरुस्त कहा है, ‘अतीत से सीखो, वर्तमान में जियो और भविष्य से उम्मीदें पालो।’ भविष्य के आकलन का सबसे बेहतर तरीका है इसे गढ़ना!
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Rupee vs Dollar: रुपये की गिरावट पर आरबीआइ की पैनी नजर, 100 अरब डॉलर और खर्च कर सकता है केंद्रीय बैंक

Rupee vs Dollar अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में इन दिनों लगातार गिरावट जारी है। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यदि आरबीआइ ने इस गिरावट को थामने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए होते तो रुपया और नीचे आ सकता था।

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। भारत का केंद्रीय बैंक आरबीआइ (RBI) रुपये की गिरावट को थामने के लिए 100 अरब डॉलर की रकम और खर्च कर सकता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, आरबीआइ अपने विदेशी मुद्रा भंडार का छठा हिस्सा बेचने के लिए तैयार है, ताकि हाल के हफ्तों में रुपये में हो रही तेज गिरावट (Rupee Price Fall) से बचा जा सके। 2022 में रुपया अपने कुल मूल्य से 7 फीसद से अधिक गिर गया है। मंगलवार को रुपया 80 प्रति अमेरिकी डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर तक नीचे आ गया। माना जा रहा है कि अगर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने जरूरी कदम नहीं उठाए होते तो यह गिरावट कहीं अधिक होती।

IRCTC share price dips after giving breakout

आरबीआइ का मुद्रा भंडार जो सितंबर की शुरुआत में 642.450 अरब डॉलर था, इसमें अब तक 60 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट आई है। यह कमी कुछ हद तक मूल्यांकन पद्धति में बदलाव के कारण, लेकिन बड़े पैमाने पर रुपये की बड़ी गिरावट को रोकने के लिए की गई डॉलर की बिक्री के कारण हुई है। लेकिन इस कमी के बावजूद, आरबीआइ के पास 580 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो दुनिया में पांचवां सबसे बड़ा है। इस विशाल फॉरेन रिजर्व के चलते ही आरबीआइ रुपये में आने वाली तेज गिरावट को रोकने के लिए अधिक तैयार विदेशी मुद्रा बुनियादी बातों और समाचार और सक्षम है। आरबीआइ के एक सूत्र ने रायटर्स से कहा कि आरबीआइ रुपये को गिरावट से बचाने के लिए जरूरत पड़ने पर 100 अरब डॉलर और भी खर्च कर सकता है। हालांकि आरबीआइ अपने घोषित रुख के अनुसार, रुपये की गिरावट को रोकने या इसे एक निश्चित स्तर पर रखने की कोशिश नहीं करता है, लेकिन किसी भी जबरदस्त गिरावट या मूल्यह्रास से बचने के लिए आरबीआइ जरूर काम करेगा।

Uniparts India IPO subscription status know full deatils in hindi (Jagran File Photo)

बता दें कि रुपये की हो रही गिरावट वैश्विक परिस्थितियों का परिणाम है। फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) द्वारा लागू की गईं सख्त और आक्रामक मौद्रिक नीतियों की आशंका से अमेरिकी डॉलर की मांग मजबूत हुई है। इससे निवेशकों द्वारा डॉलर के मुकाबले ज्यादातर करेंसी की बिकवाली की जा रही है। उधर भारत का व्यापार और चालू खाता घाटा भी बढ़ रहा है, क्योंकि रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से तेल का, जो भारत के आयात बिल का एक बड़ा हिस्सा है।

Bharat Bond ETF Fourth trench open from today (Jagran File Photo)

और गिर सकती है रुपये की कीमत

विश्लेषकों का मानना ​​है कि रुपये की गिरावट को थामने की आरबीआई की मंशा और भारत के ठोस आर्थिक बुनियादी बातों के बावजूद रुपये के लिए सबसे खराब स्थिति अभी आनी बाकी है। माना जा रहा है कि रुपया मजबूत होने से पहले एक डॉलर के मुकाबले 84-85 के स्तर तक जा सकता है।वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों में होने वाली बढ़ोतरी को देखते हुए इस बात की बहुत कम संभावना है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक इतनी जल्दी भारतीय बाजार का रुख करेंगे। सरकार और केंद्रीय बैंक के उपायों के बाद अधिकारियों को उम्मीद है कि अगले एक महीने में विदेशी निवेशक बाजार में वापस आ जाएंगे, लेकिन निवेशक अभी भी सावधान हैं।

डिजिटल मुद्रा से आरबीआई की कैश मैनेजमेंट की लागत होगी कम

आरबीआई ने 1 नवंबर से होलसेल सेगमेंट में डिजिटल रुपया लॉन्च करने के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की है और बाद में एक महीने के भीतर रिटेल सेगमेंट में एक और प्रोजेक्ट लाने की योजना है.

डिजिटल मुद्रा से आरबीआई की कैश मैनेजमेंट की लागत होगी कम

नई दिल्ली, 6 नवंबर : आरबीआई ने 1 नवंबर से होलसेल सेगमेंट में डिजिटल रुपया लॉन्च करने के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की है और बाद में एक महीने के भीतर रिटेल सेगमेंट में एक और प्रोजेक्ट लाने की योजना है. केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) को अपनाने के पीछे कई कारण हैं, जैसे वित्तीय समावेशन को बढ़ाना और कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना.

माना जाता है कि डिजिटल रुपये की ओर बढ़ने का एक प्रमुख कारण भौतिक नकदी प्रबंधन से जुड़ी लागत को कम करना है. आरबीआई के एक कॉन्सेप्ट नोट में कहा गया है कि भारत में कैश मैनेजमेंट की लागत महत्वपूर्ण बनी हुई है. 1 अप्रैल, 2021 से 31 मार्च, 2022 के दौरान सुरक्षा मुद्रण पर किया गया कुल खर्च 4,984.80 करोड़ रुपये था, जो पिछले वर्ष (1 जुलाई, 2020 से 31 मार्च, 2021) 4,012.10 करोड़ रुपये के मुकाबले अधिक है. यह भी पढ़ें : मोदी निर्वाचन क्षेत्र आधारित संसदीय लोकतंत्र के आधार को कमजोर कर रहे: चिदंबरम

यह लागत, जिसमें पैसे की छपाई की पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन (ईएसजी) लागत शामिल नहीं है, मुख्य रूप से चार स्टेकहॉल्डर्स आम जनता, व्यवसायों, बैंकों और आरबीआई द्वारा वहन किया जाता है. सीबीडीसी रुपए जारी करने वाले कार्य के समग्र मूल्य को प्रभावित करते हैं. यह मुद्रण, भंडारण, परिवहन, बैंक नोटों के प्रतिस्थापन आदि से जुड़ी लागतों से संबंधित ऑपरेशनल लागत को कम करता है.

आरबीआई के कॉन्सेप्ट नोट में कहा गया है, शुरूआत में, सीबीडीसी निर्माण या जारी करने की स्थिरता में महत्वपूर्ण निश्चित बुनियादी ढांचे की लागत हो सकती है, लेकिन बाद में मार्जिनल ऑपरेटिंग लागत बहुत कम होगी. फिजिकल करेंसी की तुलना में सीबीडीसी का उपयोग करते हुए कैश मैनेजमेंट की लागत-प्रभावशीलता एक सकारात्मक संकेत देती है, जिसे पर्यावरण के अनुकूल भी माना जा सकता है. कॉन्सेप्ट नोट में आगे कहा गया, देश की उच्च नकदी आवश्यकता को पूरा करने के लिए, सीबीडीसी लागत को कम करेगा. इसके अलावा, भौगोलिक प्रसार को देखते हुए, जहां भौतिक नकदी उपलब्ध कराना एक चुनौती भरा काम है, ऐसे में सीबीडीसी से सहज लेनदेन की सुविधा की उम्मीद है.

सीबीडीसी की शुरूआत के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को प्राप्त करने के लिए डिजिटलीकरण के उपयोग को आगे बढ़ाना है. सीबीडीसी महामारी कोविड-19 जैसी किसी भी अनिश्चित स्थिति में नकदी के बजाय केंद्रीय बैंक के पैसे रखने का एक पसंदीदा तरीका हो सकता है. इससे देश में डिजिटलीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी सीबीडीसी सीमा पार से भुगतान में इनोवेशन को बढ़ावा दे सकता है, लेनदेन को तात्कालिक बना सकता है और टाइम जोन, एक्सचेंज रेट के अंतर के साथ-साथ सभी न्यायालयों में कानूनी और नियामक आवश्यकताओं से संबंधित प्रमुख चुनौतियों को दूर करने में मदद कर सकता है.

सीबीडीसी की इंटरऑपरेबिलिटी का मतलब है कि भुगतान प्रणाली के लिए एक एंकर के रूप में केंद्रीय बैंक के पैसे की भूमिका को मजबूत करते हुए क्रॉस-बॉर्डर और क्रॉस-करेंसी के खतरे को कम करना. इसलिए, सीमा पार से भुगतान में चुनौतियों को कम करने में सीबीडीसी का संभावित उपयोग एक बेहतर तकनीक है.

वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल रुपया भी एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकता है. उपयुक्त डिजाइन विकल्पों के साथ, सीबीडीसी विभिन्न लेनदेन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जनता को डिजिटल मनी प्रदान कर सकता है. एक विकल्प के रूप में ऑफलाइन कार्यक्षमता सीबीडीसी को इंटरनेट के बिना लेन-देन करने की अनुमति देगी और इस प्रकार, खराब या बिना इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में पहुंच को सक्षम करेगी. साथ ही, उन लोगों तक पहुंच को सरल बनाएगी, जिन्हें ऋण की आवश्यकता है.

आरबीआई नोट में कहा गया है कि सीबीडीसी की यूनिवर्सल एक्सेस विशेषताएं, जिसमें ऑफलाइन कार्यक्षमता, यूनिवर्सल एक्सेस डिवाइस का प्रावधान और कई डिवाइसों में संगतता शामिल है. यह लचीलापन, पहुंच और वित्तीय समावेशन के कारणों के लिए समग्र सीबीडीसी प्रणाली में सुधार करके गेम चेंजर साबित होगी.

सबसे महत्वपूर्ण बात, सीबीडीसी क्रिप्टो एसेट्स के प्रसार की स्थिति में आम आदमी के विश्वास की रक्षा कर सकता है. बढ़ते क्रिप्टो एसेट्स मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के फाइनेसिंग से संबंधित महत्वपूर्ण जोखिम पैदा कर सकता है. इसके अलावा, क्रिप्टो एसेट्स का उपयोग मौद्रिक नीति के उद्देश्यों के लिए खतरा हो सकता है, इसकी वजह यह है कि इससे समानांतर अर्थव्यवस्था का निर्माण हो सकता है और मौद्रिक नीति संचरण और घरेलू मुद्रा की स्थिरता को कमजोर कर सकता है. यह विदेशी मुद्रा विनियमों के प्रवर्तन को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है.

सीबीडीसी जनता को एक खतरे से मुक्त वर्जुअल करेंसी प्रदान कर सकता है जो उन्हें प्राइवेट वर्जुअल करेंसी में लेनदेन के जोखिम के बिना वैध लाभ प्रदान करेगी. इसलिए, यह जनता को असामान्य स्तर की अस्थिरता से बचाने के अलावा सुरक्षित डिजिटल मुद्रा की मांग को पूरा कर सकता है, जो इनमें से कुछ वर्जुअल डिजिटल संपत्ति का अनुभव है.

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